हर किसी के चेहरे पर रौनक थी कि आज़ ईद है । औरतें सजने-संवरने में मशगूल थीं । हर तरफ़ खुशी की लहर दौड़ रही थी । हर दिल मुस्करा रहा था । सबके घरों में खुशियों के फव्वारे फूट रहे थे ।
दोनों जहां के मालिक-व-मुखतार हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अव) भी ईद की नमाज़ अदा करने के लिए तशरीफ ले जा रहे थे । रास्ते भर के कंकड़ और पत्थर हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) की जूती शरीफ को चूमने की बरकत हासिल कर रहे थे ।
सूरज भी चेहरा-ए-मुस्तफा से रोशनी की भीख ले रहा था । बच्चे गली-कूचों में खेलों में मग्न थे । चलते चलते आप अचानक रुक गए । आपने देखा कि बच्चे खेल रहे थे । उनकी हंसी से फिजा में शोर हो रहा था । एक बच्चा, दूसरे बच्चे की आँख बंद करके पूछ रहा था कि मैं कौन हूँ । बच्चे ने उसका ग़लत नाम बता दिया । सब बच्चे हंसने लगे । बच्चे आज खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ।
लेकिन इन सबसे दूर एक बच्चा था जो एक गोशे में बैठा हुआ था । उसके जिस्म पर फटे पुराने कपड़े थे । चेहरे पर उदासी थी और दिल में ना जाने कितने अरमान उसका दिल तोड़ रहे थे । नबी-ए-करीम (स.अ.व) ने इरशाद फरमाया - ऐ साहबजादे ! तुम क्यों रो रहे हो ? तुम्हारी आँखे झील की तरह क्यों बह रही हैं ?
बच्चा पहचान न सका कि हालात पूछने वाले के दामन में कितने लोग पनाह लेते हैं । बच्चे को मालूम न था कि ये वही जाते मुकद्दस हैं जिनके इशारे पर चांद के दो टुकड़े हो गए थे । उसे ये मालूम ना था कि इन्हीं की बारगाह में दरख्त भी सलाम के लिए हाजिर होते हैं । उसे ये मालूम नहीं था कि पत्थर भी इनका कलमा पढ़ते हैं और न ही उसे ये मालूम था कि इनकी उंगली के इशारे पर डूबा हुआ सूरज भी वापस पलट आता है ।
बच्चा कहने लगा - “ मुझे अपने हाल पर छोड़ दीजिए ! मैं आँसू बहा रहा हूँ तो बहाने दीजिए, मैं रो रहा हूं तो रोने दीजिए । आपको मालूम नहीं है कि हुजूर (स.अ.व) के साथ मेरे बाप एक जंग में शहीद कर दिए गए । उसके बाद मेरी माँ ने एक दूसरे शौहर से शादी कर ली । वो दोनों मिलकर मेरे माल को खा गए और उसके जालिम शौहर ने मुझे घर से भी निकाल दिया । मेरे पास खाना नहीं है कि मैं खाऊं, मेरे पास पानी नहीं है कि मैं अपनी प्यास बुझाऊँ । मेरे लिए कपड़ा नहीं है कि मैं पहनूं । मेरे लिए पनाह लेने की कोई जगह नहीं है । मेरा कोई मकान नहीं है । बस आसमान का शामियाना है और जमीन का फर्श है । जिस पर सो लेता हूं और इस जमीन पर एक बोझ की तरह हूँ । लेकिन आज अचानक जब मैंने उन बच्चों को खेलते हुए देखा, जिनके माँ-बाप हैं । जिनके बदन पर नए-नए कपड़े हैं । जिनके सरों पर हाथ रखने वाले उनके बुजुर्ग हैं । खुशी के गुलशन में बहारें हैं उनके लिए माँ की ममता और बाप का प्यार है । उनकी खुशी को देखकर मुझे गुज़रा हुआ ज़माना याद आ गया ।
वो वालिदे गिरामी की कभी न भूलने वाली शफ़क़तों का मंज़र मेरे निगाहों के सामने दौड़ रहा है । आज मेरा ज़ख्म ताजा हो गया है । मेरी मुसीबत ने एक नया रुख ले लिया है । आज अब्बूजान की मुहब्बत का झलकता हुआ सागर मुझे बैचेनी में मुबतला कर रहा है । यही मेरे रोने का सबब है ।
कुर्बान जाइए सरकार-ए-दो-आलम (स.अ.व) की नवाज़िश पर कि बच्चे के हाथ को रहमत भरे हाथ में थाम लेते हैं और इरशाद फरमाते हैं :
“ क्या तुम्हें इस बात पर खुशी ना होगी जब हुजूर (स.अ.व) तुम्हारे बाप बन जाएं ? हज़रत आयशा तुम्हारी माँ बन जाएं और हज़रत फातिमा तुम्हारी बहन बन जाए । हज़रत अली तुम्हारे चाचा बन जाएं । और हसन और हुसैन तुम्हारे भाई बन जाएं ।”
बच्चे ने जब ये सुना तो दिल की दुनिया बदल गई । उसका मुरझाया चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा । बच्चा दामन-ए-रहमत को पकड़कर मचल गया । इतनी नवाजिश को देखकर झूम उठा और मचलकर कहने लगा :
“ ऐ रहमत वाले आका ! जब आप मिल गए तो सारी कायनात मिल गई । जब आप मिल गए तो दोनों जहां की दौलत मिल गई । जब आप मिल गए तो दोनों जहां की खुदाई मिल गई । ”
अल्लाह के प्यारे रसूल हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) उस बच्चे को घर ले गए । घर में उसे अच्छे कपड़े पहनाया और उसकी जुल्फों को संवारा । जिस्म पर खुशबू मली । आँखों में सुरमा लगाया । खाना खिलाया और सब कुछ करके बच्चे को खुश कर दिया ।
नबी-ए-करीम (स.अ.व) ने देखा कि बच्चा दूल्हे की तरह खुश है । होठों पर मुस्कुराहट की कली खिल रही है । जिस्म चांदी की तरह चमक रहा है । उन्होंने बच्चे को बाहर जाने की इजाज़त दे दी । बच्चा हंसते हुए खुशियों के मोती लुटाते हुए और दौड़ते हुए उन्हीं बच्चों में जाकर मिल गया जहां वह पहले बैठा था ।
बच्चों ने जब उसकी इस बदली हुई हालत को देखा तो वो हैरान रह गए । कहने लगे तुम तो अभी रो रहे थे । अचानक कौन सी दौलत मिल गई की तुम खुश नज़र आ रहे हो ।
बच्चे ने कहा - “ सुनो ! मैं भूख व प्यास की वजह से तड़प रहा था पर अब आसूदा हो चुका हूं । मेरे जिस्म पर फटे पुराने कपड़े थे गोया मैं नंगा था पर अब मैंने कपड़े पहन लिए हैं और सबसे बडी दौलत मुझें ये मिली कि मैं बच्चा था बाप का साया सिर से उठ चुका था और मैं माँ की ममता से बहुत दूर था ।
लेकिन नबी-ए-करीम (स.अ.व) ने करम फरमाया । वो मेरे बाप बन गए । हज़रत आयशा मेरी माँ बन गईं और सुनो खातून-ए-ज़न्नत हज़रत फातिमा मेरी बहन बन गईं । हसन और हुसैन मेरे भाई बन गए । मुझे कायनात की और पूरी दुनिया की दौलत मिल गई ।
ये सुनकर सारे बच्चे एक ज़बान होकर कहने लगे - “ ऐ काश ! हम तमाम बच्चों के बाप उस जंग में शहीद हो जाते और आज हम भी तुम्हारी तरह दर-दर की ठोकरें खाते रहते तो हम सबको भी ये दौलत मिल जाती । नबी-ए-करीम (स.अ.व) हमारे भी अब्बा होते तो हम लोगों का मुक़द्दर चमक जाता । ”
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