Ashab e Kahaf Ka Waqia Hindi Mein
दोस्तों इस पोस्ट में हम आपको असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) का वाकिया बताने वाले हैं । ये काफी इबरतनाक और ईमान को तरोताज़ा कर देने वाला वाकिया है , इसलिए इसे पूरा जरूर पढ़ें । पिछली पोस्ट में हमने असहाब ए फील का वाकिया बताया था । उम्मीद है कि आपको वो पोस्ट पसन्द आया होगा । अगर आपने अभी तक उसे नहीं पढ़ा तो जरूर पढ़ें : असहाब ए फील (Ashab E Feel) का वाकिया । चलिए आज के इस पोस्ट को शुरू करते हैं ।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद अहले इंजील की हालत बदतर हो गई । वो बुतपरस्ती (मुर्ति पूजा) में मुब्तला हो गए और दूसरों को बुतपरस्ती करने के लिए मजबूर करने लगे । उनका बादशाह बड़ा ज़ालिम था । जो बुतपरस्ती पर राज़ी न होता उसको क़त्ल करवा देता था ।
Ashab e Kahaf Kon The ? असहाब ए कहफ का परिचय
असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) शहर अफ़सोस के शरीफ और मुअज़्ज़िज़ ईमानदार लोगों में से थे । रूमी बादशाह की औलाद और रूम के सरदार थे । एक मर्तबा कौम के साथ ईद मनाने के लिए गए । उन्होंने जब वहाँ शिर्क व बुतपरस्ती का तमाशा देखा तो उनके दिल में ख़याल आया कि बुतपरस्ती महज़ लगाव और बातिल चीज़ है । इबादतें सिर्फ नाम-ए-खुदा पर होनी चाहिए जो आसमान व ज़मीन का खालिक व मालिक है ।
Ashab E Kahaf Ka Butparasti Se Inkaar Karna
बस ये लोग एक एक करके वहां से सरकने लगे उनमें से एक साहब एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए । उसके बाद दूसरे भी वहीं आ गये । तीसरे भी आये फिर चौथे भी । गरज़ एक एक करके सब वहीं जमा हो गये । हालांकि वो लोग एक-दूसरे को नही जानते थे । लेकिन ईमान की रौशनी ने एक-दूसरे को मिला दिया । सब लोग खामोश थे । हरेक को यही डर सता रहा था कि अगर मैं अपने दिल की बात इनलोगों को बता दूँ तो ये दुश्मन हो जाएंगें । मगर उनमें से किसी को ये मालूम न था कि वहाँ बैठा हर आदमी अपनी कौम के बुतपरस्ती और मुशरिकों वाले काम से परेशान और मायूस था । आखिर एक नौजवान ने कहा - “दोस्तों ! कोई न कोई बात ज़रूर है जिसके वजह से हम लोग अपनी कौम से दूर आकर यहाँ बैठे हुए हैं । मेरा दिल तो चाहता है कि हर शख्स इस बात को ज़ाहिर कर दे जिसकी वजह से उसने कौम को छोड़ा है । इस पर एक ने कहा भाई बात यह है कि - “मुझे अपनी कौम की यह रस्म एक आँख नहीं भाँति । जबकि आसमान-व-ज़मीन का, हमारा और तुम्हारा ख़ालिक़ सिर्फ अल्लाह वह्दहू ला शरीक ही है, तो फिर हम उसके सिवा किसी दूसरे की इबादत क्यों करें ?
यह सुनकर दूसरे शख्स ने कहा - “खुदा की क़सम ! यही नफरत मुझे यहाँ ले आई है । तीसरे ने भी यही कहा । जब हर एक ने यही वजह बयान की तो सबके दिल में मुहब्बत की एक लहर दौड़ गई और ये सब आपस में सच्चे दोस्त और अपने भाइयों से भी से ज़्यादा एक दूसरे के खैर-ख्वाह बन गए । उनमें आपस में इत्तिफ़ाक़ हो गया और उन्होंने एक जगह मुकर्रर कर ली । इस तरह वो लोग वहीं पर खुदा-ए-वाहिद की इबादत करने लगे ।
Ashab e Kahaf (असहाब ए कहफ) Ki Khabar Badshah Tak Pahunchi
धीरे-धीरे कुछ समय बाद उनकी कौम को भी इनका पता चल गया । उनकी कौम वाले इनलोगों को पकड़ कर उस ज़ालिम और मुशरिक बादशाह के पास ले गए और शिकायत पेश की । जब बादशाह ने उनसे पूछा तो उन्होंने निहायत ही दिलेरी से अपनी तौहीद बयान कर दी । इसके बाद उनलोगों ने बादशाह और अहले दरबान को भी इस सच्चे दीन (इस्लाम) की दावत दी । बादशाह को बहुत गुस्सा आया और उसने उनको डराया-धमकाया और हुक्म दिया कि इनके लिबास (कपड़े) उतार लो और अगर ये बाज़ न आएं तो मैं इन्हें सख़्त सजा दूँगा ।
अब इन लोगों के दिल और मज़बूत हो गये । साथ में उन्हें ये भी मालूम हो गया कि इस जगह पर रहकर हम दीनदारी पर क़ायम नहीं रह सकते । इसलिए उन्होंने अपनी क़ौम, अपना मुल्क और रिश्ते-कुनबे को छोड़ने का पक्का इरादा कर लिया । फिर एक दिन मौका पा कर वहाँ से भाग निकले ।
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Ashab E Kahaf Ghar Me Kaise Pahunche ? असहाब ए कहफ गार में कैसे पहुंचे ?
असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) ने रात को ही अपना सफर शुरू कर दिया । कहा जाता है कि जब वो चल रहे थे तो उनलोगों ने देखा कि एक कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे आ रहा था । ये देख कर वो डर गए । उन्हें लगा कि ये कुत्ता भौंक कर हमें पकड़वा देगा । इसीलिए उन्होंने उसे भगाने की बहुत कोशिश की । लेकिन वो कुत्ता उनके पीछे-पीछे ही चलता रहा । फिर उनलोगों ने उसे भी अपने साथ ले लिया । वो लोग चलते रहे । लेकिन कैसे उस ज़ालिम बादशाह को इसकी खबर हो गई । वो अपने लशकर के साथ उनका पीछा करने लगा ।
भागते-भागते असहाब ए कहफ ने पहाड़ की एक गार (गुफा) में पनाह ली । वो कुत्ता भी उनके साथ ही उसी गार में घुस गया । वो काफी थक चुके थे और इसीलिए वो उसी गार में सो गये । जब उनका पीछा करते-करते वो जालिम बादशाह भी वहाँ पहुँचा तो उसने अपने सैनिकों को इस गार में घुसने का हुक्म दिया । लेकिन वो गार बेहद गर्म थी । उसके सैनिक उस गर्मी को बर्दाश्त करते हुए अंदर घुसने में नाकाम रहे । फिर उसने हुक्म दिया कि गार को एक संगीन दीवार खींच कर बंद कर दिया जाए । ताकि वो इसमें रह कर मर जाएँ । और ये गार ही उनकी कब्र बन जाए ।
लेकिन हुकूमत में से यह काम जिसके सुपुर्द किया गया वो नेक आदमी था । उसने उन असहाब के नाम, तादाद और उनका पूरा वाकिया रंग की तरह तख्ती पर कुंदा कराकर तांबे के संदूक में दीवार की बुनियाद के अंदर महफूज़ कर दिया । यह भी बयान किया गया है की इस तरह की एक तख्ती शाही ख़ज़ाने में भी महफूज़ करा दी गयी ।
इधर असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) को सोते हुए तीन सौ साल से ज़्यादा वक्त गुजर गया । और वो न उठे । कुछ अरसे के बाद वो ज़ालिम बादशाह हलाक हो गया । कई ज़माने गुजर गए । कई सल्तनतें बदल गई लेकिन वो सोते रहे । यहां तक की वक्त गुजरने के साथ एक नेक और फरमाबरदार आदमी वहाँ का बादशाह बन गया । फिर मुल्क में फिरका बंदी पैदा हो गई और लोग "मौत के बाद की जिंदगी" और "क़यामत के दावे" के खिलाफ हो गए । बादशाह एक तन्हा मकान में बंद हो गया । और उसने गिरया-व-ज़ारी से बारगाह-ए-इलाही में दुआ की - “या रब कोई ऐसी निशानी ज़ाहिर फरमा जिससे लोगों को मुर्दे के उठने और क़यामत का यक़ीन हासिल हो ।”
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Ashab e Kahaf Ka Neend Se Jagna - असहाब ए कहफ का नींद से जागना
उसी ज़माने में एक शख्स ने अपनी बकरियों के लिए आरामगाह बनाने के वास्ते इसी गार को तय किया और दिवार गिरा दी । लेकिन दिवार गिराने के बाद अल्लाह का ऐसा करिश्मा हुआ कि दीवार गिराने वाला आदमी बिना अंदर घुसे वापस चला गया । इधर अल्लाह तआला ने असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) को नींद से जगा दिया । उनके चेहरे शगुफ्ता, तबीयतें खुश और ज़िन्दगी में तरोताज़गी मौजूद उन्होंने एक-दूसरे को सलाम किया । लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि वो लोग तीन सौ बरस से ज्यादा वक्त तक सोकर उठे हैं ।
फिर वो नमाज़ के लिए खड़े हो गए । नमाज से फारिग होकर उन्होंने एक से कहा कि आप बाहर जाइये और बाजार से कुछ खाने को लाइये और ये भी खबर लाइये की दकियानूस बादशाह का हमारे बारे में क्या इरादा है । वो बाजार गए और शहर के दरवाज़े पर इस्लामी अलामत देखी । नए नए लोग पाए । उन्हें ईसा अलैहिस्सलाम के नाम की क़सम खाते सुना । तअज्जुब हुआ की यह क्या मामला है ? कल तो कोई ईमान ज़ाहिर नहीं कर सकता था और आज इस्लामी अलामतें शहर पर ज़ाहिर हैं । लोग बेखौफ होकर हज़रत के नाम की कस्मे खाते हैं । उन्हें इन बातों से हैरत इसलिए हो रही थी क्योंकि उनको ये लग रहा था कि उनको सोये हुए एक-आध दिन बीता है । हालांकि इस दौरान ज़माने गुज़र चुके थे, सदियां बीत गयी थी ।
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Ashab E Kahaf (असहाब ए कहफ) Ki Sachchai Ka Samne Aa Jana
वो असहाब रोटी वाले की दुकान पर गए । खाना खरीदने के लिए उसको दक़ियानूसी सिक्के का एक रुपया दिया जिसका चलन सदियों पहले ही खत्म हो गया था और कोई उसका देखने वाला भी बाकी न था । उस सिक्के को देखकर दुकानदार को बहुत ताज्जुब हुआ । और उसने उस सिक्के को अपने बगल वाले दुकानदार को देखने के लिए दे दिया और कहा - मियां देखना ! ये सिक्का कब का है और किस ज़माने का है ? उस दुकानदार ने उस सिक्के को देखा और फिर दूसरे को दे दिया, दूसरे से किसी और ने देखने के लिए ले लिया । अल्गर्ज़ वह एक तमाशा बन गया । बाजार वालों ने ये सोचा कि कोई पुराना खज़ाना उनके हाथ लग गया है । वो लोग उन्हें पकड़ कर हाकिम के पास ले गए । वह एक नेक आदमी था । उसने भी उनसे पूछा की खज़ाना कहाँ है ?
उन्होंने जवाब दिया कि खज़ाना कहीं नहीं है । ये रुपया हमारा अपना है । हाकिम ने कहा आपकी इस बात पर किसी भी तरह यक़ीन नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसमें जो सन (तारीख) मौजूद है वह तीन सौ बरस पहले का है और आप नौजवान है और हम लोग बूढ़े है । हमने तो ये सिक्का कभी देखा नहीं । आपने फ़रमाया की जो मैं पुछूँगा वो ठीक ठीक बताइये तो मसअला हल हो जायेगा । ये बताइये कि दकियानूस बादशाह किस ख्याल में है । ये सुनकर हाकिम को बड़ा ताज्ज़ुब हुआ । वे कहने लगा - “आज रूहे ज़मीन पर इस नाम का कोई बादशाह नहीं, सैकड़ों बरस हुए जब एक बेईमान बादशाह इस नाम का गुज़रा है ।” आपने फ़रमाया - “कल ही तो हम उसके खौफ से जान बचाकर भागे हैं । मेरे साथी करीब के पहाड़ में एक गार में पनाह लिए हैं । चलो उन्हें तुम से मिला दूँ । फिर शहर के बहुत सारे लोगों के साथ हाकिम उस गार तक पहुंचे जहाँ असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) पनाह लिए हुए थे ।
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उधर असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) अपने साथी के इंतज़ार में बैठे थे कि तभी बहुत से लोगों की आवाज़ और खटके सुनकर उन्होंने समझा कि उनका साथी पकड़ लिया गया और दक़ियानूसी फ़ौज हमारी तलाश में आ रही है । ये सुनकर अल्लाह की हम्द और शुक्र बजा लाने लगे । इतने में ये लोग वहाँ पहुँचे और उनके साथी ने सारा किस्सा सुनाया । जब उन्होंने उस कुत्ते को देखा तो उनको सारा माज़रा समझ में आ गया । उस कुत्ते के बाल बहुत ज्यादा बढ़े हुए थे । और नाखून भी बेहद लम्बे हो गए थे । इन हज़रात ने समझ लिया कि हम अल्लाह के हुक्म से इतने लम्बे वक्त तक सोते रहे और अब इसलिए उठाये गए हैं ताकि लोगों को मरने के बाद जिन्दा किये जाने पर यकीन हो सके ।
हाकिम जब सरे गार पहुंचा तो उसने ताम्बे का संदूक देखा । जब उसको खोला गया तो उसमें से एक तख्ती बरामद हुई । उसमें इन असहाब के नाम और उस कुत्ते का नाम भी लिखा हुआ था । और ये भी लिखा था की ये जमाअत अपने दीन की हिफाज़त के लिए दक़ियानूस के डर से इस गार में पनाह गुज़ी हुए । ये तख्ती पढ़कर सबको ताज्जुब हुआ और लोग अल्लाह की हम्द व सना बजा लाये कि उसने ऐसी निशानी ज़ाहिर फरमा दी जिससे मौत के बाद उठने का यक़ीन हासिल होता है ।
Ashab e Kahaf Ki Wafat - असहाब ए कहफ की वफात
हाकिम ने अपने बादशाह को इत्तला दी । वह उमरा और वज़ीरों को लेकर हाज़िर हुआ और सजदा शुक्र इलाही बजा लाया कि अल्लाह तआला ने उसकी दुआ कबूल की । फिर असहाब ए कहफ (Ashab e Kahaf) ने बादशाह से मुआनका किया और फ़रमाया कि हम तुम्हें अल्लाह के सुपुर्द करते हैं और अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाही वबरकातुहू । अल्लाह तेरी और तेरे मुल्क की हिफाज़त फरमाए और जिन्न व इंसान के शर से बचाये । बादशाह खड़ा ही था कि वो हज़रात अपनी खुआबगअहो में वापस होकर मसरूफ़े खुवाब हुए । अल्लाह तआला ने उन्हें वफ़ात दी । बादशाह ने "शाल के संदूक" में उनके बदनों को महफ़ूज़ किया और अल्लाह तआला ने रौब से उनकी हिफाज़त फ़रमाई कि किसी की मजाल नहीं कि वहां तक पहुंच सके । बादशाह ने सारे गार मस्जिद बनाने का हुक्म दिया और उस दिन को ख़ुशी का दिन तय कर दिया । फिर उसने ऐलान कर दिया की हर साल लोग ईद की तरह वहां आया करें ।
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आखिरी बात
दोस्तों ये थी आज की हमारी पोस्ट "असहाब ए कहफ का वाकिया इन हिन्दी में (Ashab e Kahaf Ka Waqia in Hindi Mein) " के बारे में । मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी पसन्द आई होगी । इसे अपने तमाम दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी जरूर शेयर करें क्योंकि अच्छी बात को दूसरों तक पहुंचाना भी सदका-ए-ज़ारिया है । मैं आपसे फिर मिलूंगा अगली पोस्ट में , तबतक के लिए अल्लाह हाफिज़ !