Ashab E Feel Waqia Hindi Mein
Ashab E Feel Ka Waqia in Hindi
दोस्तों , इस आर्टिकल में हम आपको Ashab e Feel Ka Waqia जिसे Hathi Walon Ka Kissa भी कहते हैं उस वाकिये को बयान करने वाले हैं । आपसे गुजारिश है कि इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़ें और पसंद आने की सूरत में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी जरूर शेयर करें ।
अबराहा कौन था ?
दोस्तों Ashab E Feel Ki Story जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि अबराहा कौन था ? तो आपकी मालूमात के लिए आपको बता दें कि 'अबराहा' यमन का बादशाह था ।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
दोस्तों अब Ashab E Feel Ka Kissa शुरू करते हैं । हुजूर-ए-अकदस रसूलुल्लाह (स.अ.व) की पैदाईश से कुछ ही दिन पहले यमन का बादशाह “अबराहा” हाथियों की फौज लेकर काबा शरीफ को ढ़हाने के लिए मक्का पर हमलावर हुआ था । तो ऐसे में सवाल उठता है कि अबराहा काबा शरीफ पर हमला क्यों करना चाहता था ?
Abraha Ne Kaba Par Hamla Kyon Kiya ?
यमन के बादशाह अबराहा ने यमन के दारुल सल्तनत “सनआ’ में एक बहुत ही शानदार और आलीशान गिरजाघर बनवाया था और वो यह कोशिश कर रहा था कि अरब के लोग काबा शरीफ न जाकर यमन आएँ और उस गिरजाघर का हज करें ।
जब मक्का वालों को ये मालूम हुआ तो कबीला-ए-कीनाना का शख्स गैज़-ओ-गज़ब में जल-भुन गया और वहाँ जाकर अबराहा के गिरजाघर की बेहुरमती कर दी । जब अबराहा ने ये वाकिया सुना तो वो तैश में आपे से बाहर हो गया और काबा शरीफ को ढहाने के लिए हाथियों की फौज लेकर मक्का वालों पर हमला कर दिया और उसकी फौज के अगले दस्ते ने मक्का वालों के तमाम उँटों और दूसरे मवेशियों को छीन लिया । इसमें से 200 या 400 उँट हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) के दादा अब्दुल मुत्तलिब के भी थे ।
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Abraha Se Mulakat
आप (स.अ.व) के दादा अब्दुल मुत्तलिब को इस वाकिये से बड़ा रंज (दु:ख) पहुँचा । इसीलिए आप इस मामले में गुफ्तगू के लिए अबराहा के लश्कर में तशरीफ ले गए । जब अबराहा को मालूम हुआ कि कुरैश का सरदार उससे मुलाकात करने के लिए आया है तो उसने आपको अपने खेमे में बुला लिया । और अपने बराबर में बैठा कर दरियाफ्त किया ; “कहिए सरदार-ए-कुरैश ! यहाँ आपकी तशरीफ आवरी का क्या मकसद है ?” अब्दुल मुत्तलिब ने जवाब दिया कि - “हमारे उँट और बकरियाँ वगैरह जो आपके लश्कर के सिपाही हांक कर ले आये हैं । आप उन सब मवेशियों को हमारे सुपुर्द कर दीजिए ।”
ये सुनकर अबराहा ने कहा - “ऐ सरदार-ए-कुरैश ! मैं तो ये समझता था कि आप बहुत ही हौलामन्द और शानदार आदमी हैं, मगर आपने मुझसे अपने उंटों का सवाल करके मेरी नज़र में अपना वकार कम कर दिया । उँट और बकरियों की हकीकत ही क्या है ? मैं तो आपके काबा को तोड़-फोड़ कर बर्बाद करने के लिए आया हूँ । आपने तो इसके बारे में गुफ्तगू ही नहीं की ?” अब्दुल मुत्तलिब ने फरमाया - “मुझे तो अपने उँटों से मतलब है । काबा मेरा घर नहीं बल्कि वो अल्लाह का घर है । वो खुद अपने घर को बचा लेगा । मुझे काबा की ज़रा भी फिक्र नहीं है ।”
ये सुनकर अबराहा अपने फिरऔनी लहज़े में कहने लगा - “ऐ सरदार-ए-मक्का सुन लीजिए ! मैं काबा को ढ़हा कर उसकी ईंट से ईंट बजा दूँगा और रुए-ज़मीन से उसका नामो-निशान मिटा दूँगा । क्योंकि मक्का वालों ने मेरे गिरजाघर की बड़ी बेहुरमती की है । इसीलिए मैं उसका इंतिकाम लेने के लिए काबा को बर्बाद कर देना जरूरी समझता हूँ । अब्दुल मुत्तलिब ने फरमाया - “फिर आप जाने और अल्लाह जाने, मैं आपसे सिफारिश करने वाला कौन होता हूं ?” इस गुफ्तगू के बाद अबराहा ने तमाम जानवरों को वापस कर देने का हुक्म दे दिया और अब्दुल मुत्तलिब तमाम उँटों और बकरियों को साथ लेकर अपने घर चले आये और मक्का वालों से फरमाया कि तुम लोग अपने-अपने माल, मवेशियों को लेकर मक्का से निकल जाओ और पहाड़ियों की चोटियों पर चढ़कर और दर्रों में छुपकर पनाह लो । मक्का वालों से ये कहकर और फिर अपने खानदान के चन्द आदमियों को साथ लेकर खाना-ए-काबा में गये और दरवाजे का हल्का पकड़ कर इंतिहाई बेकरारी और गिरियावजारी के साथ दरबार-ए-बारी तआला में दुआ माँगने लगे कि “ऐ अल्लाह ! बेशक हर शख्स अपने-अपने घर की हिफाज़त करता है लिहाज़ा तू भी अपने घर की हिफाज़त फरमा ।” अब्दुल मुत्तलिब ने ये दुआ माँगी और अपने खानदान वालों को पहाड़ की चोटी पर लेकर चढ़ गये और अल्लाह की कुदरत का जलवा देखने लगे ।
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Abraha Ka Kooch
अबराहा जब सुबह को काबा को ढहाने के लिए अपने लश्कर-ए-जर्रार और हाथियों के साथ आगे बढ़ा और मकाम-ए-मुगम्मास में पहुँचा तो खुद उसका हाथी जिसका नाम “महमूद” था वो एकदम बैठ गया । उसने उसे बार-बार मारा और ललकारा मगर हाथी नहीं उठा । इसी हालत में कहर-ए-इलाही अबाबीलों के शक्ल में नमूदार हुआ और नन्हें-नन्हें परिन्दे जिन की चोंच और पंजों में तीन-तीन कँकड़ियाँ थीं, समुंदर की जानिब (तरफ) से काबा शरीफ की तरफ आने लगे । अबाबीलों के इन दल-बदल लश्करों ने अबराहा के लश्कर और फौजों पर इस जोर-शोर से संगबारी (पथराव) शुरू कर दी के अबराहा के लश्कर और उसके हाथियों के परखच्चे उड़ गये । अबाबीलों की संगबारी (पथराव) अल्लाह के कहर की ऐसी मार थी कि जब कोई कँकड़ी किसी फील (हाथी) सवार को लगती तो वह उस आदमी के बदन को छेदती हुई हाथी के बदन से पार हो जाती थी । (अल्लाहू अकबर !)
अबराहा और उसके लशकर हाथियों समेत इस तरह हलाक-व-बर्बाद हो गये कि उनके जिस्म की बोटियाँ टुकड़े-टुकड़े होकर च़मीन पर बिखर गई । चुनाँचे कुरआन-ए-करीम की Surah Feel में अल्लाह तआला ने इस वाकिये का जिक्र करते हुए फरमाया कि : ऐ रसूल (स.अ.व.) ! क्या आपने न देखा कि आपके रब ने उस हाथी वालों का क्या हाल कर डाला ? और उन परिन्दों की टुकड़ियाँ भेजी ताकि उन्हें कंकड़ से पत्थर मारे । तो उन्हें चबाए हुए भूस जैसा बना डाला ।
अल-कुरान (सूरह फील 105)
Ashab E Feel Ka Waqia Ki Tafseer
दोस्तों , अल्लाह रब्बुल इज्जत चाहता तो अपने घर के हिफाजत के लिए फरिश्तों को तक भेज सकता था, उँटों और हाथियों के लश्कर से भी अपने घर की हिफाजत कर सकता था, लेकिन उसने ऐसी छोटी सी चिड़िया भेजी जिसे देख कर किसी को डर भी नहीं लगता । यानी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त किसी का मुहताज नहीं बल्कि वो हमें आगाह कर रहा है कि “ऐ इंसानों मेरे घर और मेरे दीन (मज़हब) की हिफाजत के लिए मुझे तुम्हारी रत्ती बराबर भी जरूरत नहीं है । मैं चाहूँ तो छोटे-से-भी छोटे जानवर से अपने घर की हिफाजत कर लूँ । लेकिन ऐ इंसानों ! ये तुम्हारी ही खुशकिस्मती और सर्फ होगा के तुम आखिरत के लिए कुछ कार-ए-खैर करो ।”
दोस्तों Ashab E Feel के वाकिये में हमने देखा कि किस तरह अल्लाह तआला ने छोटे-छोटे परिन्दों के ज़रिये अपने घर की हिफाज़त की , लेकिन आज हम तादाद में कसीर होते हुए भी दुशमन-ए-दीन से शिकस्त खा रहे हैं, इसीलिए क्योंकि हमने अल्लाह के दीन के लिए कोई मस्लहत नहीं की । जिसका नतीजा है कि ज़ालिम हुक्मरान हम पर मुसल्लत होते जा रहे हैं । [ अल्लाह हम सब पर रहम करे ]
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Ashab E Feel Ke Kisse Se Sabak
अल्लाह तआला से दुआ है कि हमें Ashab E Feel के वाकिये पर अम्ल करने की तौफीक दे । जो लोग ये कहते हैं कि इस्लाम खतरे में है… वो याद रखें कि इस्लाम को न ही कभी कोई खतरा था और न ही कभी होगा (इंशाअल्लाह) । बल्कि खतरे में वो मुसलमान है जो इस दीन को छोड़कर अपने नफ्स की ताबेदारी कर रहा है । जबकि इस दीन कि फितरत है कि ये हर हाल में पूरे इंसानियत तक पहुँच कर रहेगा और इसी बात को अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) ने फरमाया और कहा : “ ये दीन तो हर घर में दाखिल होकर रहेगा । चाहे कच्चा मकान हो या पक्का, या बन्द किले हों या खुली वादियाँ हों । दीन-ए-इस्लाम सारे आलम-ए-इंसानियत तक पहुँचकर रहने वाला है । हदीस-ए-नबवी ﷺ ( मसनद अहमद; 16998 )
Ab Hamein Kya Karna Chahiye ?
दोस्तों , Ashab E Feel Ka Waqia सुनने के बाद अब आप खुद में ही ये तय कर लें कि आपको दीन के साथ कितनी मजबूती से रहना है या फिर नहीं रहना है । अल्लाह तआला तो अपना काम बखूबी करेगा (इसमें कोई शक नहीं) । वो अपने दीन को इंसानों पर वाजेह करेगा, दीन के साथ चलने वालों को आजमाएगा और फिर उसका बदला देगा । और दीन छोड़ने वालों को दुनिया और आखिरत में इबरतनाक बनाएगा और अजाब देगा ।
याद रखिए कि इस्लाम की पहचान मुसलमानों से नहीं बल्कि मुसलमानों की पहचान इस्लाम से है । बहरहाल हमलोगों को चाहिए कि अल्लाह के दीन की रस्सी को मजबूती से पकड़ कर रखें । अल्लाह का कलाम कुरआन और हुजूर (स.अ.व) के बताये हुए रास्ते पर चलें । अगर हम लोग ये काम करेंगे तो इंशाअल्लाह दुनिया और आखिरत दोनों में कामयाब हो जाएँगे । [ इंशाअल्लाह ]
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें कुरआन पढ़ने और सुनने की तौफीक दे । [ आमीन ]
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें सुन्नत का पाबंद बनाए । [ आमीन ]
जब तक हमें जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िन्दा रखे । [ आमीन ]
हमारा खात्मा ईमान पर हो और हमें कलमा पढ़ना नसीब हो । [ आमीन ]
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