Jang E Badr Ka Waqia in Hindi | जंग ए बद्र का वाकिया हिन्दी

Jang E Badr Ka Waqia in Hindi Mein | Badr ki Jung ki story | Badr ka kissa

जंग ए बद्र का वाकिया

मेरे अजीज़ दोस्तों आज मैं आपको Jang E Badr Ka Waqia बताने जा रहा हूं । उम्मीद है कि आपको Jang E Badr Ka Kissa जरूर पसन्द आएगा ।


Jung E Badr Ka Kissa in Hindi

हुजूर पूरनूर नबी-ए-करीम (सल्ललाहु अलैहि वसल्लम) अपने 313 सहाबा एकराम (रजि.) के साथ सन् 2 हिजरी में मदीना शरीफ से बद्र के मुक़ाम पर पहुंचे । जहां कुफ्फार-ए-मक्का के साथ जंग-ए-बद्र का मशहूर वाकिया रुनुमा हुआ ।


Jung e badr ka waqia in hindi


जब आपलोग बद्र के मुक़ाम पर पहुंचे तो रात हो चुकी थी । उस वक्त अरब के क़ाइम-कर्दा-अक़ाईद के तहत ये तय पाया गया कि सुबह जंग होगी , लिहाज़ा रात भर आराम किया जाए । फिर एक जानिब मुसलमानों के लश्कर ने पड़ाव डाला जबकि दूसरी ज़ानिब कुफ्फार अपने लश्कर के साथ ठहरे । हालांकि अगर ये मालूम हो जाए कि सुबह जंग होने वाली है तो मारे खौफ के नींद कहां आएगी ।


सहाबा एकराम (रज़ि.) तो शहादत पाने की खुशी में और ज़ज़्बा-ए-इमानी से सरशार वैसे भी न सो सके । सुबह न जाने किसकी किस्मत में जाम-ए-शहादत नोश करना लिखा हो ? मगर अल्लाह त'आला ने सारे इस्लामी लश्कर को सुकून की नींद मुहैया की । इससे पहले सहाबा ए इकराम कभी ऐसी पुर-सुकून नींद न सोये थे ।


उधर अल्लाह तआला की कुदरत-ए-कामला से कुफ्फार पर रात भर खौफ तारी रहा , जिससे उनको सारी रात नींद न आई । फिर अल्लाह तआला ने मुसलमानों के दिलों में कुफ्फार के लश्कर को इंतिहाई कम कर दिया , जबकि कुफ्फार के दिलों में ये खौफ डाल दिया जैसे वो 313 न हों बल्कि 1000 हों ।

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सुबह हुई । हुज़ूर नबी ए करीम (स.अ.व) की इक्तिदा में सारे सहाबा इकराम (रजि.) ने नमाज़ ए फ़ज्र अदा की और नमाज़ अदा करते ही नबी ए करीम (स.अ.व) ने सब से कहा :

अगर ऐसा हो जाए कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की ज़ानिब से 1000 फ़रिश्ते तुम्हे जंग में साथ दें तो कैसा रहेगा ?

यह सुनकर सहाबा इकराम (रजि.) मारे खुशी के झूम उठे । रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने फिर से फरमाया :

अगर 3000 फरिश्ते आ जाएं तो कैसा रहेगा ?

एक बार फिर सहाबा (रजि.) खुशी से झूम गए । फिर आखिर में रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने फरमाया कि :

अगर 5000 फ़रिश्ते आ जाये तो कैसा रहेगा ?

इतना सुनना था कि सहाबा एकराम (रजि.) बहुत खुश हुए और कहने लगे कि अगर ऐसा हो गया तो हम कुफ्फार पर बड़ी आसानी से ग़ल्बा पा जाएंगे । क़ुर्बान जाइये सरकार-ए-दो-आलम हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) पर , कि उस वक़्त अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फरिश्ते भेजने का इरादा नहीं फरमाया था , लेकिन जब हुज़ूर नबी ए करीम (स.अ.व) ने फ़रमा दिया तो अल्लाह तआला ने अपने हबीब के लिए फरिश्तों की फ़ौज़ भेज दी !



[ नोट : फरिश्तों की तादाद को लेकर अलग अलग फतवा भी जारी किये गए हैं और कई अलग तादाद का जिक्र भी किया जाता रहा है । ऐसे में हमने इंटरनेट पर मौजूद दूसरे सोर्स का सहारा लिया है । अगर आपको इसमें कोई गलती नजर आती है तो हमें जरूर लिखें । ]


इधर जब जंग शुरू हुई तो अल्लाह तआला ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि जाओ और असहाब ए बद्र के साथ जंग में कुफ्फार से लड़ो , और ऐसे जाना की तुम्हारे हाथो में तीर और तलवार हो , जंगी लिबास में जाना । अल्लाह तआला का हुक्म पाते ही फरिश्तों की जमात सरदार ए मलाइका हज़रत ज़िब्रिल अलेहहिस्सलाम की कियादत में असहाब ए बद्र के साथ कुफ्फार से जंग करने के लिए आ गए और ये जंग मुसलमानो ने फरिश्तों की गैबी मदद से आसानी से जीत ली । इस जंग में कुफ्फार के कई सरदार मारे गए जिससे उनके लश्कर की कमर टूट गई और बहुत से कुफ्फार को कैदी बना लिया गया ।

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फिर जब कैदियों को सामने लाया गया तो नबी करीम (स.अ.व) ने सहाबा एकराम (रजि.) से पूछा कि इनके साथ क्या किया जाए । सब लोगों ने अपनी-अपनी राय दी । कुछ ने कहा कि इनको कत्ल कर दिया जाए , जबकि कुछ सहाबा ने कहा कि इनको गुलाम बना लिया जाए । मगर कुर्बान जाऊं रसूलुल्लाह (स.अ.व) पर । आप (स.अ.व) ने ये फैसला सुनाया कि उन कैदियों से फायदा हासिल करके उन्हें आजाद कर दिया जाए । (सुभानअल्लाह) क्या बात फरमाई है आप (स.अ.व) ने ? लोग उनको मारने की गरज से आते थे लेकिन आप अपनी रहमत-ए-बा-करम के सदके उन्हें छोड़ देते थे ।



जंग खत्म होने के बाद सारे फरिश्ते वापस चले गए । और आप (स.अ.व) ने नमाज पढ़ाई । जब आप नमाज से फारिग हुए तो एक सहाबी ने अर्ज़ किया " या रसूलल्लाह (स.अ.व) आप नमाज के दौरान मुस्कुरा क्यों रहे थे ?" तो सरकार-ए-दो-आलम (स.अ.व) ने मुस्कुरा कर जवाब दिया : " जब जंग के बाद जिब्रील-ए-अमीन (अलैहिस्सलाम) तमाम फरिश्तों को लेकर चले गए । तो अल्लाह तआला के हुक्म से आसमान पर फरिश्तों ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया और फ़रमाया कि तुम जिस मक़सद के लिए गए थे , उसके बिना वापस कैसे आ गए ...??" यह सुनकर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फरमाया : हम तो जंग में सहाबा की मदद करने के किये गए थे । फिर उन फरिश्तों ने जवाब दिया कि : नहीं ! तुम को मुहम्मदुर् रसुलूल्लाह (स.अ.व) की खातिर भेज गया था , लिहाज़ा जाओ और जब तक उनसे इज़ाज़त न ले लो तबतक वापस न आना ।"


इसी वजह से जिब्रील अलैहिस्सलाम मेरे पास आये थे और उस वक़्त हम नमाज अदा कर रहे थे । मैं नमाज में बोल नहीं सकता था इसलिए मुस्कुराकर मैंने उन्हें इज़ाज़त दी , कि हां अब तुम सभी जा सकते हो । [ माशाअल्लाह ! ]


Jung E Badr Ke Kisse Se Sabak

दोस्तों हमने आपको जंग ए बद्र का वाकिया आसान तरीके से बता दिया , लेकिन जंग ए बद्र का वाकिया सिर्फ सुनने या खुश होने के लिए नहीं है । बल्कि हमें इससे सीखने की जरूरत है । आईये , एक नज़र जंग ए बद्र पर डालते हैं :

जंग ए बद्र में मुसलमानों के सामान :


सिर्फ 313 सहाबा ।
70 ऊंट
3 घोड़े
8 तलवार और
6 ज़िरह ।


लश्कर ए कुफ्फार के सामान :


1000 अफ़राद
700 ऊंट
100 घोड़े
950 तलवार और
950 ज़िरह ।


जंग ए बद्र में कुफ्फार की हालत :


कुफ्फार के लश्कर में खाने पीने का सामान बड़ी कसरत से था ।
रोजाना 11 ऊंट ज़बह करके खाते थे ।

कुफ्फार के लश्कर में ऐश व इशरत का सामान भी काफ़ी तादाद में था ।
जब वो किसी पानी के किनारे पड़ाव करते तो ख़ेमे लगाते थे ।
उनके साथ गाने वाली तवाइफें थी ।


जंग ए बद्र में सहाबा एकराम की हालत :


इस्लामी लश्कर के पास खाने पीने का सामान न था ।
किसी के पास 7 तो किसी के पास 2 खजूरें थीं ।
मुसलमानों के पास एक भी ख़ेमा नहीं था ।
सहाबा एकराम ने खजूर के पत्तों और टहनीयों से एक झोंपड़ी तैयार करके हजूरे अकदस नबी ए करीम ﷺ को उसमें ठहराया था । आज उस जगह पर मस्जिद बनी हुई है।


नतीजा :


कुफ्फार के लश्कर से 70 आदमी कैद किए गए और 70 आदमी कत्ल हुए जिनमें अबू जहल भी शामिल था ।
इस्लामी लश्कर में 14 सहाबा शहीद हुए और मुसलमानों को फ़तह मिली ।



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दोस्तों , अब गौर कीजिए । आज हमारे पास सबकुछ है । अल्लाह के फज़ल से किसी चीज़ की कमी नहीं है , फिर भी मुसलमानों को हर जगह सताया जा रहा है । मारा-काटा जा रहा है । घर जला दिए जा रहे हैं । आपने कभी सोचा है , आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ??


आज का मुसलमान अपने दीन से भटक रहा है , आज लोगों ने नबी (स.अ.व) के अहादिस मुबारक और कुरआन पर अमल करना छोड़ दिया है । एक वो लोग थे जो जान देकर भी ईमान से डिगते नहीं थे और एक हम लोग हैं जो 2 रुपए में अपना ईमान तक बेच देते हैं ।


आखिरी बात

मेरे अजीज दोस्तों , हमें चाहिए कि हम लोग पांचों वक्त की नमाज का पाबन्द रहें । क्योंकि नमाज एक ऐसी चीज है जो आधे से ज्यादा गुनाहों से रोक देती है । दूसरी बात ये कि हम अपने घरों में इस्लामी तहजीब और शरीयत को लागू करें । घरों में टीवी सीरियल या फिल्में देखकर बरकत खत्म न करें । एक दूसरे के साथ मुहब्बत से पेश आएं । अपने आले-औलाद को मोबाईल फोन जैसी चीजों से रखें और उन्हें अच्छी तालीम दें । अभी हालात ऐसे हैं कि हमारे हिन्दुस्तान में एक खास मज़हब के लोग मुसलमानों को कमज़ोर करने के लिए हमारी बेटियों और बहनों को सोशल मीडिया के ज़रिये फंसाना चाहते हैं , ताकि वो मुसलमानों को मजबूर कर सकें । और उनकी घरों में नफरत फैला सकें । इसीलिए इसपर भी एहतियात जरूर रखें ।


अभी कुछ दिनों पहले ही एक खबर ऐसी आई थी कि एक हिन्दु लड़का मुसलमान होने का ढोंग करके एक मुस्लिम लड़की से निकाह कर रहा था । जबकि उस लड़की के घरवालों को ये मालूम ही नहीं था । जब मामला सामने आया तो पता चला कि उस लड़की को इस बारे में पहले से ही मालूमात हासिल थी लेकिन वह उस लड़के का मजहब अपने घरवालों से छुपा कर उससे निकाह करना चाहती थी । इस खबर ने मुझे अंदर से तोड़कर रख दिया । आखिर उसे उसके वालदैन ने कैसी तरबियत दी कि वो एक गैर मोमीन के साथ मिलकर अपने ही वालिदैन को धोखा दे रही थी ? एक ऐसा लड़का जिसके पास ईमान की दौलत तक नहीं है उसके लिए उसने अपना ईमान बेच दिया । इस मामले में हम उसके वालिदैन को बेगुनाह नहीं ठहरा सकते । क्योंकि उनकी बेटी फोन पर हर रोज़ एक गैर मुस्लिम लड़के से बात करती रही लेकिन उन्हें पता तक नहीं चला । मां/बाप/भाई/बहन किसी को भी खबर न हुआ ? यहां तक कि वो लड़का उनके घर आने जाने लगा लेकिन फिर भी उन्होंने उससे ये तक नहीं पूछा कि ये लड़का कौन है ? और यहां क्यों आता है ?

आखिर कितने लापरवाह , खुदगर्ज और अंधे हो गए हैं लोग ?? मुझे लगता है कि एक इंसान को अच्छा और मजबूत इंसान बनाने में उसकी मां का सबसे बड़ा हाथ होता है । अगर मां यह तय कर ले कि मुझे अपने बेटियों या बेटों को कैसी तरबियत देनी है तो किसी इंसान की मज़ाल नहीं कि वो उसके बच्चे को भटका सके । लेकिन आज की औरतें ऐसी हैं कि नमाज से ज्यादा टीवी सीरियल को अहमियत देती हैं । कई वालिदैन बेशक बहुत अच्छे हैं जो अपने औलाद की तरबियत अच्छे ढ़ंग से करते हैं , और उन्हीं के बच्चे आगे चलकर कामयाब होते हैं और दीन व दुनिया दोनों में नाम कमाते हैं । 


मैं आपको शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान का एक वाकिया बता रहा हूं :

जब टीपू सुल्तान ने शेर को मार गिराया तो उनके वालिद साहब ने कहा कि टीपू ने मेरी वजह से शेर को मार गिराया क्योंकि मैंने उसे लड़ना सिखाया था । ये सुनकर उनकी बीवी ने जवाब दिया कि : नहीं ! टीपू ने मेरी वजह से शेर को मार गिराया , क्योंकि जब वो छोटा था तो मैं उसको दूध पिलाते वक्त कुरआन की तिलावत किया करती थी । जिसके वजह से मेरा बेटा बहादुर बना ।



ये उस वक्त की मांओं की सोच थी । वो अपने औलाद को पैदा होने के बाद से ही मजबूत और जिंदादिल बनाने की कोशिशें शुरू कर दिया करती थीं । और उन्हें शरीयत कि ऐसी तालीम देती थी कि वो अपनी आखिरी सांस तक इस्लाम पर मजबूती से बने रहते थे । लेकिन अफसोस कि आज वालिदैन ये सोचते हैं कि जब मेरा बेटा बड़ा हो जाएगा तो वो खुद ब खुद होशियार हो जाएगा । और इसी सोच में रहकर वो अपनी औलाद को न ही कभी डांटते हैं और न ही कभी समझाते हैं । यहां तक कि 12 बरस की उम्र हो जाने के बाद भी बच्चा ये नहीं जानता कि नमाज कैसे पढ़ते हैं ।




दोस्तों , उम्मीद है कि आपको हमारा Jang e Badr ka waqia hindi mein पोस्ट जरूर पसन्द आया होगा । इसे अपने तमाम दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी जरूर शेयर करें । क्यों अच्छी बात को दूसरों तक पहुंचाना भी सदका-ए-ज़ारिया है । अपने घरों में कुरान के पढ़ने-पढ़ाने का माहौल बनाएं और बच्चों को शुरू से ही गलत चीजों से दूर रखें ताकि आगे चलकर वो एक मज़बूत मुसलमान बन सकें । मैं आपसे अगली पोस्ट में मिलूंगा …. तबतक के लिए … खुदा हाफिज़ !


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दोस्तों इस्लाम से जुड़ी हर तरह की पोस्ट के लिए हमें फॉलो करना न भूलें । खुदा हाफिज़ !

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This Article has been written by Muhammad Saif. 🙂

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