इंतिकाल से पहले क्या होता है ?
फरमाया अल्लाह तआला ने - “यहां तक कि तुम में से किसी को मौत आ जाती है तो ले लेते हैं उसको हमारे फरिश्ते और ये ज्यादती नहीं करते ।”
इब्न अब्बास (रज़ि.) ने इस आयत की तफसीर में फरमाया है कि इस आयत से मुराद मल्कुल मौत को मदद करने वाले फरिश्तों से है ।
वहब़ बिन मंबा (रज़ि.) कहते हैं : जो फरिश्ते इंसान के पास आते हैं और उसकी उमर लिखते हैं वही उस की रूह कब्ज़ करते हैं । और कब्ज़ करने के बाद मल्कुल मौत को दे देते हैं । और मल्कुल मौत उनके सरदार हैं ।
रिवायत है अबू हुरैरा (रज़ि.) से : जब अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को पैदा करने का इरादा किया तो जो फरिश्ते अर्श उठाए हुए हैं उन में से एक को ज़मीन की तरफ भेजा ताकि कुछ मिट्टी लाए । उसने जब मिट्टी लेने का इरादा किया तो ज़मीन ने कहा - “तुझे कसम है उस ज़ात पाक की जिस ने तुझ को भेजा है ! मुझ से मिट्टी न ले, कि कल के रोज़ उसको आग में जलना होगा ।” ये सुनकर फरिश्ते ने मिट्टी नहीं ली ।
जब वह परवरदिगार के पास पहुंचा तो परवरदिगार ने पूछा - “तुम को किस ने मेरा हुक्म बज़ा लाने से बाज़ रखा ?” फरिश्ते ने अर्ज़ किया - “खुदावन्द ! उसने मुझे तेरी कसम दी इसलिए मैंने मिट्टी नहीं लिया ।”
फिर खुदा तआला ने दूसरा फरिश्ता ज़मीन की तरफ भेजा । उसको भी ज़मीन ने वही कसम दी । और यहां तक कि अल्लाह तआला ने कुल फरिश्तों को एक-एक करके भेजा और मिट्टी लाने से सब आज़िज़ रहे । तब अल्लाह तआला ने मल्कुल मौत को भेजा । जब मल्कुल मौत ने मिट्टी लेने का इरादा किया तो उसे भी ज़मीन ने उसी तरह की कसम दी । मल्कुल मौत ने कहा : “ जिस ने मुझ को भेजा है उसका हुक्म बजा लाना ज़रूरी है । फिर ज़मीन के हर हिस्से भले और बुरे से थोड़ी-थोड़ी मिट्टी लेकर परवरदिगार के पास हाज़िर हुए । फिर जन्नत के पानी से ख़मीर करके आदम अलैहिस्सलाम का बदन तैयार किया गया ।
ज़ेहरी ने भी इसी तरह की रिवायत की है और कहा कि अव्वल फरिश्ता इसराफ़ील और दूसरा मिकाईल थे । बहुत से सहाबा (रज़ि.) ने कहा कि अव्वल फरिश्ते ज़िब्राईल और मिकाईल थे ।
रिवायत है इब्न साब्ता से : मुहद्दिसीन ने रिवायत की है कि अल्लाह तआला ने दुनिया का इंतिज़ाम चार फरिश्तों (ज़िब्राईल, मिकाईल, इसराफ़ील और मल्कुल मौत) के हवाले किया है ।
इमाम ज़लालुद्दीन सेवती (रह.अ.) ने रिवायत किया है : अल्लाह तआला ने अर्श के नीचे एक दरख्त पैदा किया है । उसके पत्ते तमाम ख़लायक की गिनती के बराबर हैं । उसका नाम सज़रतुल मुनतहा है । जब किसी बन्दे की उम्र खत्म हो जाती है और चालीस दिन बाकी रह जाते हैं तो हजरत इज़राईल अलैहिस्सलाम के सामने उस का एक पत्ता गिरता है । उस पर उस बन्दे का नाम लिखा रहता है । उस वक्त से तमाम फरिश्ते उसको मुर्दा कहते हैं । फिर वह दुनिया में सिर्फ चालीस दिन तक ही ज़िन्दा रहता है ।
अगर वह नेकबख़्त है तो मल्कुल मौत उसके नाम के चारों ओर एक नूरानी लकीर देखता है । जब चालीस दिन पूरे हो जाते हैं तो मल्कुल मौत उसके पास आता है और उसके सामने बैठता है । उस वक्त मरीज़ अपनी बीमारी की तकलीफ में रहता है । जब मल्कुल मौत को देखता है तो घबराकर पूछता है - “तुम कौन हो और तुम्हारा क्या इरादा है ?” जवाब मिलता है कि मैं मल्कुल मौत हूँ । तेरी रूह कब्ज़ करने का मुझ को हुक्म है । ये सुनकर वह मुंह फेर लेता है और उसकी आंखे पथर जाती है । फिर मल्कुल मौत कहता है - “तू मुझ को नहीं पहचानता ? मैं वह हूं जिसने तेरी औलाद और तेरे मां-बाप की रूह कब्ज़ की है । आज तेरी रूह कब्ज़ करूंगा । और तू देख लेगा तेरे औलाद को और तेरे आका रब को । मैं वह मौत हूं कि अगले लोगों को फना कर चुका हूँ । वह लोग तुझ से ज्यादा माल और कुव्वत रखते थे । तूने दुनिया को कैसा पाया और उसका हाल कैसा देखा ?” इसके जवाब में बन्दा कहता है - “मैंने दुनिया को बेवफा और मक्कार पाया ।” फिर अल्लाह तआला के हुक्म से दुनिया उस के पास आएगी और कहेगी - “ऐ नाफरमान ! तूने अपने रब की किस कदर नाफरमानी की और किस कदर तूने नसीहत की बहुत सी बातें सुनी लेकिन तूने समझा कि हम दुनिया में हमेशा रहेंगे । याद रखो ! मैं तुझ से और तेरे आमाल से बेज़ार हूँ ।” फिर उसका माल सामने आएगा और कहेगा - “ऐ नाफरमान ! तूने नाहक तरीके से मुझ को हासिल किया । अगर तू गरीब और मिस्कीन पर खर्च करता तो आज मैं तेरे काम आता ।”
रिवायत है कि : जब आदमी की ज़बान बन्द हो जाती है । तो चार फरिश्ते उसके पास आते हैं और सलाम करते हैं ।
पहला फरिश्ता आता है तो सलाम के बाद कहता है - “ऐ अल्लाह के बन्दे ! मैं तेरी रोज़ी पर मुवक्कल था । मैंने तमाम ज़मीन पर पूरब से पश्चिम तक तलाश किया मगर तेरी रोज़ी का एक लुकमा भी कहीं नहीं पाया ।
फिर दूसरा फरिश्ता आता है और सलाम के बाद कहता है - “ऐ अल्लाह के बन्दे ! मैं तेरी पानी पर मुवक्कल था । मैंने तमाम ज़मीन पर पूरब से पश्चिम तक तलाश किया मगर तेरे पीने के लिए पानी का एक कतरा भी कहीं नहीं पाया ।
फिर तीसरा फरिश्ता आता है और सलाम के बाद कहता है - “ऐ अल्लाह के बन्दे ! मैं तेरी सांस पर मुवक्कल था । मैंने तमाम ज़मीन पर पूरब से पश्चिम तक तलाश किया मगर तेरे वास्ते एक सांस भी कहीं नहीं पाया ।
फिर चौथा फरिश्ता आता है और सलाम के बाद कहता है - “ऐ अल्लाह के बन्दे ! मैं तेरी उम्र पर मुवक्कल था । मैंने तमाम ज़मीन पर पूरब से पश्चिम तक तलाश किया मगर तेरी उम्र का एक हिस्सा भी कहीं नहीं पाया ।
उसके बाद नाम-ए-आमाल लिखने वाले दो फरिश्ते उस के पास आते हैं और सलाम के बाद कहते हैं : “ऐ अल्लाह के बन्दे ! हम तेरे आमाल लिखने पर मुवक्कल थे । और नाम-ए-आमाल उस को दिखाएंगे । और कहेंगे - देख ! ये तेरा नाम-ए-आमाल है । उस वक्त मैय्यत की आंख से आंसू जारी होते हैं । और वह दाहिने-बायें देखता है । और नाम-ए-आमाल पढ़ने से डरता है । उसके बाद मल्कुल मौत उसकी रूह कब्ज़ करते हैं ।
रिवायत है रबी’अ बिन अनस (रज़ि.) से कि उन से किसी ने पूछा : मल्कुल मौत तन्हा सब की रूह कब्ज़ करते हैं या उनके साथ और फरिश्ते भी इस काम में शरीक हैं ?
फरमाया - रूह कब्ज़ करने का काम उन्हीं के हवाले है लेकिन इसमें मदद करने के वास्ते बहुत से फरिश्ते दिए गए हैं । और मल्कुल मौत उन सब के सरदार हैं । उन का हर कदम दुनिया के पूरब और पश्चिम के बराबर है । फिर रबी’अ बिन अनस (रज़ि.) से पूछा कि अरवाह कहां रहती है ? [ बहुत सारी रूह को अरवाह कहते हैं ] । तो उन्होंने फरमाया - सातों आसमान के उपर सिदरतुल-मुन्तहा के पास ।
रिवायत है इब्न अब्बास (रज़ि.) से : बहुत से फरिश्ते मल्कुल मौत के साथ होते हैं । मैय्यत की रूह कब्ज़ करने के वक्त आते हैं । उनमें से कुछ फरिश्ते रूह को ले जाते हैं और कुछ फरिश्ते मैय्यत पर दुआ करने वालों के साथ आमीन कहते हैं । और कुछ फरिश्ते मैय्यत की मगफिरत की दुआ करते हैं । जब तक उसकी ज़नाज़ा की नमाज नहीं पढ़ी जाती ।
एक सहाबी (रज़ि.) से रिवायत है कि उन्होंने सुना रसूलुल्लाह (स.अ.व) फरमा रहे थे : मैंने एक अन्सारी के सर के पास मल्कुल मौत को देखा । मैंने उन से कहा कि ऐ मल्कुल मौत ! मेरे साथी पर आसानी करना वह मोमिन है । इस पर मल्कुल मौत ने कहा - “आप इत्मीनान रखें और खुश हों कि मैं हर मोमीन के साथ आसानी करता हूँ । मैं जब इब्न आदम की रूह कब्ज़ करता हूँ और उसके घरवाले रोते हैं तो मैं रूह को लेकर घर में कहता हूँ - तुम लोग क्यों रोते हो ? कसम है परवरदिगार की ! हमने इस पर ज़ुल्म नहीं किया । और वक्त से पहले इसकी जान को कब्ज़ नहीं किया । रूह कब्ज़ करने में हमने गुनाह नहीं किया । अगर तुमलोग अल्लाह के हुक्म पर शब्र करोगे तो सवाब पाओगे और अगर बेशब्री करोगे तो गुनाहगार होगे । हम तुम्हारे यहां फिर आवेंगे । चुप रहो, चुप रहो ! और घरवालों को नेककार हो या बदकार, ज़मीन में रहता हो या पहाड़ पर, हर रात और हर दिन मैं तलाश करता हूँ । और मैं छोटे-बड़े को ऐसा पहचानता हूं कि वह लोग खुद को भी ऐसा नहीं पहचानते होंगे । कसम खुदा की ! अगर मैं एक मच्छर की भी रूह कब्ज़ करना चाहता हूँ तो मुझ को उसकी ताकत नहीं जबतक अल्लाह तआला का हुक्म न हो ।
ज़अफर बिन मुहम्मद (रज़ि.) कहते हैं : कि मल्कुल मौत सब लोगों में नमाज तलाश करते हैं । और जब मौत के वक्त रूह कब्ज़ करने आते हैं । और अगर मैय्यत नमाजी है तो उस के पास जो शैतान है उसको दफा करते हैं और ऐसी मुश्किल के वक्त में उस को “ ला इलाहा इल्लल्लाह ” सिखाते हैं । उस के बाद रूह कब्ज़ करते हैं ।
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अच्छी बात को दूसरों तक पहुंचाना भी सदका-ए-ज़ारिया है ।
हम आपसे जल्द ही मिलेंगे अगली पोस्ट में । तबतक के लिए अल्लाह हाफिज़ !