कंकड़ी का तोहफा और शेर का वाकिया | Best Islamic Waqia in Hindi

Best islamic inspirational waqia in Hindi | Urdu Kissa For Kids
कंकड़ी का तोहफा और शेर की कहानी | Best Hindi Islamic Waqia


एक काफिला सफ़र के दौरान एक अंधेरी सुरंग से गुज़र रहा था । चलते चलते उनके पैरों में कुछ चुभने लगा । उनमें से कुछ लोगों ने सोचा कि ये कंकड़ियां किसी और को न चुभ जाए इसीलिए उन्होंने वो कंकड़ियां उठा कर अपनी जेब में रख ली ।
आधे रास्ते तक वो लोग उन कंकड़ियों को चुनते रहे । उनमें से कुछ ने ज्यादा कंकड़ियां उठाई कुछ लोगों ने कम, और कुछ लोग बिना उठाये चलते रहे ।


काफी देर तक चलने के बाद जब वह उस अंधेरी सुरंग से बाहर आए और कंकड़ियों को फेंकने के लिए जेब से बाहर निकाला तो वो ये देखकर हैरान रह गए कि वो कंकड़ियां नहीं बल्कि हीरे थे ।


जिन लोगों ने उन हीरों को कंकड़ समझ कर ज्यादा उठाया था वो खुश हो गए
जिन लोगों ने कम उठाया वो पछताने लगे की हमने ज्यादा क्यों नही उठाया और जिन लोगों ने कुछ भी नहीं उठाया था वो अपने आप को ही कोसने लगे कि हमने क्यों नहीं उठाया ?


सबक : इस पूरी कहानी (islamic story in hindi) से हमें यह सबक मिलता है कि -
हमारी ज़िन्दगी उस अँधेरी सुरंग की तरह है । और नेकियां यहाँ कंकड़ियों की तरह है ।

नेकियां हमारे चारों तरफ बिखरी पड़ी है लेकिन अंधेरे के वजह से हम उसे देख नहीं पाते । आज हम जो भी नेकियां करेंगे वो आख़िरत में हीरे की तरह कीमती होगी और लोग तरसेंगे ये सोचकर कि हमने और ज्यादा नेकियां क्यों नहीं की ।



शेर और लोमड़ी की कहानी



एक बार एक आदमी एक जंगल से गुज़र रहा था । तभी उसे एक लोमड़ी नज़र आई । एक ऐसी लोमड़ी जो चारों पैरों से अपाहिज थी यानी उसके चारों पैर कटे हुए थे । लेकिन वह बिल्कुल तन्दुरूस्त और मोटी थी । ये देखकर वो आदमी सोचने लगा “कि इसे रोज़ी किस तरह मिलती होगी ?”
वह ये सोच ही रहा था कि इतने में एक शेर आ गया । वह कहीं से शिकार करके मुंह में हिरन दबाए हुए घसीटते हुए आया । उस शेर को देखकर वह आदमी एक पेड़ के पीछे छ

छिप गया और मंजर देखने लगा । वो शेर उस हिरन को खाने लगा और जब उस शेर का पेट भर गया, तो वो बचे हुए हिरन को वहीं छोड़ कर चला गया ।

इतने में वो लोमड़ी अपने बदन को घसीटते हुए उस हिरन के पास आई और उस हिरन को खाने लगी । तब उस आदमी को समझ आया, कि इस अपाहिज लोमड़ी कि रोज़ी का इन्तजाम अल्लाह ने इस तरह कर रखा है ।

अब वो आदमी सोचने लगा “जब अल्लाह इसे इतनी आसानी से रोज़ी दे सकता है तो मैं तो इन्सान हूँ यानी अशरफुल मखलुकात हूँ । मैं क्यों रोज़ी के लिये भटकता फिरूं ? मुझे भी रोज़ी मिल जायेगी । इस तरह वो आदमी अपने घर जाकर सिर्फ ईबादत करने मे लग गया । और मेहनत मशक्कत छोड़ दी । काम-धंधा छोड़ दिया । सिर्फ इबादत करने लगा ।

एक दिन, दो दिन, कुछ दिन गुज़र गये । लेकिन रोज़ी का कोई इन्तजाम नहीं दिखा । एक दिन उसने अल्लाह के बारगाह में दुआ कि - “या अल्लाह ! तू एक मोहताज लोमड़ी को रोजी देता है, मुझे रोज़ी क्यों नहीं अता फरमाता ?

ग़ैब की तरफ से आवाज़ आई - “ऐ नादान ! तूने मुहताज लोमड़ी को देखा लेकिन मुख्तार शेर को नहीं देखा । जो खुद भी खाता है और मुहताजों को भी खिलाता है । तू शेर बन, लोमड़ी क्यों बन गया ? तेरे तो हाथ-पैर सब सलामत है ।

तू मेहनत करके हलाल रोज़ी की तलाश कर । तब हम तुझे अता करेंगे और फिर हमारी ईबादत भी किया कर ताकि तेरी रोज़ी मे बरकत हो । फिर शेर कि तरह खुद भी खा और लोमड़ी कि तरह गरीबों, मिस्किनों, फ़कीरों को भी खिला । (मसनवी शरीफ)

फलसफ़ा - इंसान को चाहिये कि हलाल रोज़ी के लिये मेहनत-मशक्कत करे । उसे तलाश करे । यकीनन अल्लाह रोज़ी देने वाला है, वो ज़रुर देगा । और साथ-ही-साथ अल्लाह की ईबादत यानी फर्ज़, वाज़िब, सुन्नत भी अदा किया करे । यही ज़िन्दगी जीने का तरीका है । हलाल रोजी कमाकर बीवी-बच्चों को हलाल रोज़ी खिलाना भी जिहाद है ।


एक टिप्पणी भेजें

Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.