अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू। दोस्तों ! हम में से ज्यादातर लोग यह तो जानते हैं कि मरने के बाद हमारा जिस्म कीड़े-मकोड़े और जमीन खा जाती है । लेकिन क्या सबके साथ ऐसा ही होता है ? इसका जवाब है , नहीं !
दोस्तों अल्लाह तआला ने सबका जिस्म खाना जमीन पर हराम नहीं किया , लेकिन कुछ अजीमुश्शान हस्तियों का जिस्म खाना जमीन पर हराम है । आज के इस पोस्ट में मैं आपको इसी बारे में बताने वाला हूं । अगर आपको ये पोस्ट पसन्द आती है तो इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी जरूर शेयर करें ।
इस पोस्ट की शुरूआत हम कुछ हदीस और रिवायतों से करेंगे :
रिवायत है वहब बिन मनंबा (रजि.) से
मैंने आसमानी किताबों में पढ़ा है कि अल्लाह तआला ने फरमाया ' अगर सड़ने और बदबूदार हो जाने का हुक्म मैं न करता तो आदमी अपनी मैय्यत को घरों में रखते ।'
रिवायत है ज़ैद बिन अरकम (रजि.) से कि रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने फरमाया
अल्लाह तआला कहता है कि मैंने तीन चीजों से अपने बन्दों पर आसानी पर आसानी कर दी है :
मैंने अनाज पर कीड़े-मकोड़ों को मुकर्रर कर दिया है । अगर ऐसा न करता तो बादशाह पूरे अनाज को अपने पास जमा कर लेता । जिस तरह से सोना-चांदी को जमा कर लेता है ।
मौत के बाद मैंने बदन को सड़ने और गल जाने का हुक्म किया । अगर ऐसा न करता तो कोई दोस्त अपने अपने दोस्त को मरने के बाद दफन न करता ।
मैं गमज़दा आदमी के दिल से गम को दूर करता हूँ । अगर ऐसा न करता तो इन्सान कभी भी खुश न होता ।
रिवायत है अबू कलाबा (रजि.) से
अल्लाह तआला ने रूह से अच्छी और पाकिज़ा कोई चीज़ नहीं बनाई । जब तक रूह बदन में रहती है तबतक बदन तरो-ताजा रहता है । और जब उस को निकाल लेते हैं तो बदन सड़ गल जाता है ।
रिवायत है अबू हुरैरा (रजि.) से कि फरमाया रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने - आदमी के शरीर का हर हिस्सा सड़-गल जाता है । सिवाय रीढ़ की हड्डी के । क्योंकि कयामत के दिन उसी रीढ़ की हड्डी से ही पूरा शरीर बनाया जाएगा ।
रिवायत है ओस (रजि.) से कि फरमाया रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने - जुमा के दिन मुझ पर दूरूद ज्यादा पढ़ो । क्योंकि उस दिन तुम्हारे दुरूद को फरिश्ते मुझ तक पहुँचा देते हैं । सहाबा एकराम ने अर्ज़ किया - या रसूलुल्लाह (स.अ.व) फरिश्ते किस तरह हमारा दुरूद आप तक पहुंचाएंगे ? आप भी तो कब्र में मिट्टी हो जाएंगे । तब आप (स.अ.व) ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने अम्बिया की लाश खाना ज़मीन पर हराम कर दिया है ।
रिवायत है कि बैहकी और वाकदी (रजि.) से
हजरत माविया (रजि.) ने मकाम उहद में कुआं खुदवाने का इरादा किया । और ऐलान कर दिया कि जिन के मुर्दे उहद में दफन हैं वो लोग हाज़िर हों । कुआं खोदने में जितनी लाशें निकलीं सब की सब तरो-ताज़ा और नई थीं । इत्तिफाक से एक मैय्यत के पांव में कुल्हाड़ी लग गई और तुरंत उस से ताज़ा खून बहने लगा ।
रिवायत है अब्दुर्रहमान (रजि.) से
जंग उहद में उमर बिन जमूह अन्सारी और अब्दुल्लाह बिन उमर अन्सारी शहीद हो गए । और दोनों को एक नीची ज़मीन में दफन किया गया । बारिश के ज़माने में सैलाब आया । जिसके वजह से ये दोनों कब्रें खुल गई । जब दोनों लाशें निकाली गईं ताकि किसी दूसरी ज़मीन में दफन किया जा सके । तो दोनों लाशें तरो-ताज़ा निकलीं । और उनकी कोई हालत बदली न थी । ऐसा लग रहा था जैसे वो आज ही मरे हों । उनमें से एक शहीद के बदन में ज़ख़्म था और उसने अपना हाथ उस ज़ख्म पर रखा हुआ था । जब उस का हाथ ज़ख्म से हटाकर सीधा किया गया तो उसने फिर से अपना हाथ ज़ख्म पर रख लिया । फिर दोनों लाशों को एक ऊंची जमीन में दफन किया गया । मोज़जा ये है कि उस वक्त जंग ए उहद को बीते 46 साल हो चुके थे ।
रिवायत है इब्न उमर (रजि.) से कि फरमाया रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने - जो कोई अल्लाह के वास्ते अज़ान दे । और किसी फायदे की उम्मीद न रखे । बल्कि महज़ सवाब की नियत से अज़ान दे तो वह उस शहीद की तरह है जो खून में तड़प रहा हो । और मरने के बाद उस आदमी का बदन महफूज़ रहेगा । यानी उसके बदन को ज़मीन न खाएगी ।
दूसरी रिवायत में है कि - कयामत के दिन मैदान-ए-महशर में मोअज्ज़िन की गर्दन सबसे बुलन्द रहेगी । और कब्र में उसका बदन महफूज रहेगा ।
रिवायत है ज़ाबिर (रजि.) से कि फरमाया रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने - जब हाफिज-ए-कुरान इंतिकाल करता है तो अल्लाह तआला ज़मीन को हुक्म देता है कि उस का गोश्त न खाए । इस पर ज़मीन कहती है - ऐ मेरे रब मैं क्योंकर उसका गोश्त खा सकती हूँ जबकि तेरा कलाम पाक उसके सीने में है ।
रिवायत है कि जिस शख्स ने कभी गुनाह नहीं किया है । जमीन उसका गोश्त नहीं खाएगी ।
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आखिरी बात
दोस्तों उम्मीद है कि आपको हमारा ये आर्टिकल जरूर पसंद आया होगा । अगर आपको ये पोस्ट पसंद आया तो इसे अपने दूसरे दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें । क्योंकि अच्छी बात दूसरों तक पहुंचाना भी सदका-ए-ज़ारिया है । हम आपसे जल्द ही मिलेंगे एक नए पोस्ट में । तबतक के लिए । अल्लाह हाफिज़ !
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