दुनिया भर में मशहूर अफ्रीकी फुटबॉलर “इमेनुएल एडबायर” का मानना है कि ईसाइयों की तुलना में मुसलमान ईसा मसीह की बातों को ज्यादा मानते हैं । खुद को ईसा मसीह के बताये रास्ते पर चलने का दावा करने वाले ईसाई लोग उनकी बातों से बहुत दूर है जबकि मुसलमानों की जिंदगी में ईसा मसीह की बहुत सी बातें देखने को मिल जाएंगी ।
इमेनुएल एडबायर नेे उन तेरह (13) बातों को साझा किया है जिन बातों की वजह से उन्होंने इस्लाम अपनाया । आईये इस पर एक नज़र डालते हैं :
( 1 )
ईसा मसीह (ईसा अलैहिस्सलाम) ने लोगों को तालीम (शिक्षा) दी कि ईश्वर एक ही है और सिर्फ वही इबादत और पूजा के लायक है । [ बाईबल ]
बाईबल के अनुसार – “हे, इस्राइल, सुन, हमारा परमेश्वर सिर्फ एक ही है।” (व्यवस्थाविवरण-6: 4)
– “यीशु ने उसे उत्तर दिया, सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है, हे इस्राएल सुन! प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है।” (मरकुस-12:29)
मुसलमानों का विश्वास और आस्था भी यही है कि एक परमेश्वर के अलावा कोई इबादत के लायक नहीं ।
कुरआन के अनुसार – “अल्लाह तो केवल अकेला पूज्य है। यह उसकी महानता के प्रतिकूल (खिलाफ) है कि उसका कोई बेटा हो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफी है।” (4:171)
( 2 )
ईसा मसीह ने कभी सुअर का मांस नहीं खाया
बाईबल के अनुसार – “और सुअर, जो चिरे अर्थात फटे खुर का होता तो है परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है।
इनके मांस में से कुछ न खाना, और इनकी लोथ को छूना भी नहीं; ये तो तुम्हारे लिए अशुद्ध है।” (लेवव्यवस्था-11: 7-8)
मुसलमान भी सुअर का मांस नहीं खाते।
कुरआन के अनुसार – “कह दो, ‘जो कुछ मेरी ओर प्रकाशना की गई है, उसमें तो मैं नहीं पाता कि किसी खाने वाले पर उसका कोई खाना हराम किया गया हो, सिवाय इसके लिए वह मुरदार हो, यह बहता हुआ रक्त हो या, सुअर का मांस हो – कि वह निश्चय ही नापाक है।” (6:145)
( 3 )
किसी से मिलते वक्त सलाम का संबोधन करना
ईसा मसीह ने भी अस्सलामु अलैकुम (तुम पर शान्ति हो) कहा था।
बाईबल के अनुसार – “यीशु ने फिर उनसे कहा, तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं।” (यूहन्ना-20: 21)
कुरआन के अनुसार – मुसलमान भी एक-दूसरे से मिलते वक्त सलाम करते हैं।
( 4 )
किसी काम में कामयाबी के लिए इंशाअल्लाह कहना
ईसा मसीह हमेशा कहते थे – ईश्वर ने चाहा तो (इंशा’अल्लाह) जैसा कि मुसलमान कुछ करने से पहले कहते हैं।
कुरआन के अनुसार – “और न किसी चीज के विषय में कभी यह कहो, ‘मैं कल इसे कर दूंगा।’ बल्कि अल्लाह की इच्छा ही लागू होती है। और जब तुम भूल जाओ तो अपने रब को याद कर लो और कहो, ‘आशा है कि मेरा रब इससे भी करीब सही बात की ओर मार्गदर्शन कर दे।'” (18: 23-24)
( 5 )
प्रार्थना करने से पहले वुजू करना
ईसा मसीह प्रार्थना करने से पहले अपने हाथ, चेहरा और पैर धोते थे। मुस्लिम भी इबादत करने से पहले अपना हाथ, चेहरा और पैर धोते हैं यानी वुजू बनाते हैं।
( 6 )
नमाज (प्रार्थना) का तरीका
ईसा मसीह और बाइबिल के दूसरे पैगम्बर अपना सिर जमीन पर टिकाकर प्रार्थना करते थे यानी सजदा करते थे ।
बाईबल के अनुसार – “फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तो भी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” (मत्ती-26: 39)
मुसलमान भी अपनी इबादत में सजदा करते हैं।
कुरआन के अनुसार – ‘ऐ मरियम ! पूरी निष्ठा के साथ अपने रब की आज्ञा का पालन करती रह, और सजदा कर और झुकने वालों के साथ तू भी झुकती रह।’ (3: 43)
( 7 )
दाढ़ी रखना और चोगा पहनना
ईसा मसीह दाढ़ी रखते थे और चोगा पहनते थे। मुस्लिम मर्द भी दाढ़ी रखते हैं और चोगा पहनते हैं।
( 8 )
पैगंबरों पर यकीन और पुराने कानूनों का पालन करना
ईसा मसीह पहले के पैगम्बरों को मानते थे और उस दौर के कानून की पालना करते थे।
बाईबल के अनुसार – “यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं।” (मत्ती-5: 17)
मुसलमानों का भी दूसरे पैगम्बरों को लेकर ऐसा ही यकीन है।
कुरआन के अनुसार – “कहो, ‘हम तो अल्लाह पर और उस चीज पर ईमान लाए जो हम पर उतरी है, और जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक और याकूब और उनकी औलाद पर उतरी उस पर भी, और जो मूसा और ईसा और दूसरे नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान हुई (उस पर भी हम ईमान रखते हैं) । हम उनमें से किसी को उस ओर से प्रदान हुई (उस पर भी हम ईमान रखते है। हम उनमें से किसी को उस सम्बन्ध से अलग नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।'” (3-84)
( 9 )
परदा करना और बेहतर पोशाक पहनना
ईसा मसीह की मां मरियम पूरे शरीर को ढँकने वाली पोशाक पहनती थी और अपने सिर को भी ढकती थी ।
बाईबल के अनुसार – “वैसे ही स्त्रियां भी संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूंथने, और सोने, और मोतियों, और बहुमोल कपड़ों से, पर भले कामों से।” (1 तीमुथियुस-2: 9)
– “और रिबका ने भी आंख उठा कर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊंट पर से उतर पड़ी तब उसने दास से पूछा, जो पुरुष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, सो कौन है? दास ने कहा, वह तो मेरा स्वामी है। तब रिबका ने घूंघट ले कर अपने मुंह को ढ़ाप लिया।” (उत्पत्ति: 24: 64-65)
– “यदि स्त्री ओढ़नी न ओढ़े, तो बाल भी कटा ले; यदि स्त्री के लिये बाल कटाना या मुण्डाना लज्जा की बात है, तो ओढऩी ओढ़े ।” (कुरिन्थियों-11: 6)
मुस्लिम महिलाएं ऐसा ही परिधान पहनती हैं।
बाईबल के अनुसार – “ऐ नबी! अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें। इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि वे पहचान ली जाएं और सताई न जाएं। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।” (33:59)
( 10 )
उपवास करना (रोज़े रखना)
ईसा मसीह और बाइबिल के अन्य पैगम्बरों ने चालीस दिन तक उपवास किया था ।
बाईबल के अनुसार – “मूसा तो वहां यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उसने रोटी खाई और न पानी पीया। और उसने उन तख्तियों पर वाचा के वचन अर्थात दस आज्ञाएं लिख दीं।” (निर्गमन-34:28)
– “तब उसने उठ कर खाया पिया; और उसी भोजन से बल पाकर चालीस दिन रात चलते चलते परमेश्वर के पर्वत होरेब को पहुंचा।” (1 राजा-19: 8)
मुसलमान भी एक माह तक उपवास करते हैं। यह उन पर फर्ज है।
कुरआन के अनुसार – “ऐ ईमान लानेवालो! तुम पर रोजे अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखने वाले बन जाओ।” (2:183)
( 11 )
किसी के घर जाने पर सलाम कहना
ईसा मसीह जब किसी के घर जाते तो उस घर वालों के लिए कहते थे कि उन पर शान्ति हो। लोगों को भी उन्होंने किसी के घर जाने पर ऐसा ही कहने की हिदायत दी थी।
बाईबल के अनुसार – “जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, कि इस घर पर कल्याण हो।” (लूका-10: 5)
आज मुसलमान भी ठीक उसी तरह अपने और दूसरों के घरों में जाने से पहले अस्सलामु अलैकुम (तुम पर सलामती हो) कहते हैं।
कुरआन के अनुसार – “जब तुम घरों में दाखिल हो तो अपने लोगों को सलाम करो जो बाबरकत दुआ है अल्लाह की तरफ से।” (24: 61)
( 12 )
मर्दों का खतना कराना
ईसा मसीह का खतना किया हुआ था। आज हर मुसलमान अपना खतना कराता है ।
बाईबल के अनुसार – “जब आठ दिन पूरे हुए, और उसके खतने का समय आया, तो उसका नाम यीशु रखा गया, जो स्वर्गदूत ने उसके पेट में आने से पहिले कहा था।” (लूका-2: 21)
– “जो तेरे घर में उत्पन्न हो, अथवा तेरे रुपे से मोल लिया जाए, उसका खतना अवश्य ही किया जाए; सो मेरी वाचा जिसका चिन्ह तुम्हारी देह में होगा वह युग युग रहेगी।” (उत्पत्ति-17: 13)
कुरआन के अनुसार – “फिर अब हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की, ‘इबराहीम के तरीके पर चलो, जो बिलकुल एक ओर का हो गया था और बहुदेववादियों में से न था।’ (16: 23)
– पैगम्बर मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) ने फरमाया- पैगम्बर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने अस्सी साल की उम्र में अपना खतना किया था। – (बुखारी, मुस्लिम, अहमद)
( 13 )
अल्लाह का संबोधन
ईसा मसीह अरेमिक भाषा बोलते थे और परमेश्वर को “ईलाह” कहकर पुकारते थे। इलाह का उच्चारण अरबी के अल्लाह शब्द जैसा ही है। अरेमिक प्राचीन और बाइबिल की भाषा है। यह सेमेटिक भाषा है।
अरेमिक का इलाह और अरबी का अल्लाह शब्द एक ही है।
Source - दी हेराल्ड