दोस्तों ! हजरत अय्युब अलैहिस्सलाम का वाकिया उन सब लोगों के लिए नसीहत है जो किसी जिस्मानी बीमारी में मुब्तला (यानी शारिरिक तौर पर बीमार) हैं, या जिनका माल-व- दौलत सब खत्म हो गया हो, या जो अपने औलादों के इंतकाल से बहुत रंजीदा हों, तो वैसे लोग इस पूरे वाकिये को जरूर सुनें । हर ग़मज़दा शख्स के लिए अल्लाह के नबी हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम की जिंदगी का बेहतरीन नमूना मिसाल के तौर पर मौजूद है । क्योंकि जो तकलीफ हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम को पहुँची वो इन सब तकलीफों से कहीं ज्यादा थी । लेकिन आप ने शब्र किया और अपनी जिंदगी याद-ए-अल्लाह में बसर किया । यहाँ तक की अल्लाह तआला ने अपने महबूब बंदे हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम की सारी तकलीफें दूर फरमा दीं और उन्हें बुलंद मकाम अता किया ।
दोस्तों हम में से बहुत से लोग ऐसे भी हैं कि अगर हमें थोड़ी सी दुख-तकलीफ पहुँचती है या काम-धंधे में नुकसान हो जाता है तो तुरंत शिकवा-शिकायत करने लगते हैं । कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि अल्लाह तआला हमारी दुआएँ कबूल नहीं करता, या ये कहते हैं कि अल्लाह तआला हमें भूल गया है । ( नऊज़ुबिल्लाह )
जब किसी के घर किसी का इंतिकाल होता है तो बहुत से लोग जो नादान हैं ( सब लोग नहीं केवल कुछ लोग) ये कहते हैं कि क्या अल्लाह को हमारा ही घर मिला था । अल्लाह तआला ने हमारे साथ अच्छा नहीं किया । और बहुत से लोग अपनी किस्मत और तकदीर को ही कोसने लगते हैं कि हमारा ही मुकद्दर खराब है या हमारी ही किस्मत फूटी है । ( नऊज़ुबिल्लाह )
दोस्तों ! दावा तो हम अपने मुसलमान होने का करते हैं और अल्लाह तआला पर ईमान रखने की बात करते हैं । जब भी कभी हम पर कोई मुसीबत, तकलीफ, बीमारी या परेशानी आए तो हमें शब्र करना चाहिए और अपने रब पर ईमान रखना चाहिए और उसकी तरफ रूजू करना चाहिए । क्योंकि अगर उस रब ने हमें दुख, तकलीफ, मुसीबत या बीमारी दी है तो वही हमें इससे निज़ात दे सकता है ।
दोस्तों अल्लाह तआला जिसे कामयाबी देना चाहे तो उसे दुनिया की कोई भी ताकत नहीं रोक सकती और अगर अल्लाह किसी को नाकामी देना चाहे तो वह चाह कर भी कामयाब नहीं हो सकता । ऐसे हालात में हमें ये सोचना चाहिए कि आखिर हमसे क्या गलती हुई है जिसके वजह से मुझ पर ये मुसीबत नाज़िल हुई । और अगर आपको लगे कि वाकई आपने कोई गलत काम किया है तो उसे वापस करने की कोशिश करें ।
मिसाल के तौर पर किसी ने किसी का 100 रुपया चुरा लिया लेकिन बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह उसे 100 रुपए वापस करके उससे माफी मांग सकता है ।
लेकिन अगर आपको ऐसा लगता है कि आपने कोई गलती नहीं की है तो आपको यह सोचना चाहिए कि हो सकता है कि आपका रब आपकी परीक्षा ले रहा है । वह ये देख रहा है कि इस मुसीबत से कहीं आप अपने खुदा का भूल तो नहीं जा रहे ।
इसीलिए हमें हर दुख और मुसीबत में शब्र से काम लेना चाहिए । और कभी भी अल्लाह को या अपने तकदीर को नहीं कोसना चाहिए ।
और सब से बढ़ कर हमारा ये ईमान होना चाहिए कि हमें जो भी नेअमतें या कामयाबियाँ मिलती हैं वो सब अल्लाह तआला की तरफ से है, और इस पर हमें अल्लाह तआला का शुक्र गुज़ार होना चाहिए ।
दूसरा ये कि अगर हमें कोई नाकामी या दुख-तकलीफ मिलती है तो वह हमारे ही अपने बुरे कामों के वजह से होती है । अगर कोई मुसीबत हमें अपने ही बुरे कामों के वजह से मिले तो हमें बारगाह-ए-इलाही में तौबा करना चाहिए और उस बुरे काम को छोड़ कर सीरत-ए-मुस्तकीम पर चलने की कोशिश करना चाहिए । नमाज और रोज़े की पाबंदी करना चाहिए, अगर दौलत हो तो सदका और ज़कात देना चाहिए । जिससे हमारा रब हम से राज़ी हो जाए और हमारे गुनाहों को बख्श दे । और हमारी परेशानी और तकलीफों को हमसे दूर कर दे ।
और अगर ये हमारी आज़माईश है तो इस पर हमें शब्र करना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा हमें याद-ए-अल्लाह में अपना वक्त गुजारना चाहिए । क्योंकि खुदा उन बन्दों का ही इम्तिहान लेता है जिन्हें वह अपना महबूब रखता है । शब्र करना इसीलिए जरूरी है क्योंकि शब्र करने और जिक्र-ए-अल्लाह से ही बन्दा उस आज़माईश से कामयाब होकर निकलता है और उसके दरज़ात बुलंद कर दिए जाते हैं ।
“इन्नल लाहा मअश शाबिरीन”
यानी - अल्लाह तआला शब्र करने वालों के साथ है ।
• हर हाल में शब्र और शुक्र अदा करते रहें अपने रब का •
अज़ीज दोस्तों इस किस्से के शुरूआत में आपने पढ़ा कि अल्लाह तआला ने शैतान को ये अख्तियार दिया कि - “जा ! हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम को जमीन, ज़ायदाद, आल औलाद और सेहत से महरुम कर दे (या छीन ले) फिर देख मेरा महबूब बन्दा क्या करता है । और शैतान इब्सिस ने हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम की सारी जमीन, ज़ायदाद और आल औलाद छीन लिया । यहाँ तक कि उनकी अच्छी सेहत भी छीन ली ।
हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम का जिस्म बीमारी और बलाओं में गिरफ्तार हो गया । लेकिन अल्लाह तआला ने आपकी ज़ुबान और दिल को महफूज़ (सलामत) रखा ।
इस तकलीफ के बावजूद आप शकीर और शाबिर रहे और रात दिन, हर लम्हा, हर घड़ी जिक्र ए इलाही में बसर की ।
[ शकीर = शुक्र करने वाला ] [ शाबिर = शब्र करने वाला ]
• क्या शैतान इंसान की जान व माल पर कुदरत रखता है ?
दोस्तों यहाँ पर आपके ज़ेहन में ये सवाल उठता होगा कि - “क्या शैतान इब्सिस किसी को भी दुख, तकलीफ, बीमारी और मौत दे सकता है ?”
इसका जवाब है - नहीं ! बिल्कुल नहीं ! बल्कि शैतान इंसानों को हलाकान तो कर सकता है, परेशान तो कर सकता है, लेकिन मौत नहीं दे सकता ।
और अगर अल्लाह तआला की ऐसी ही मस्लेहत हो तो शैतान, जिन्नात, खब्बीस, जादूगर और दुशमन किसी भी इंसान को दुख, तकलीफ, परेशानी और बीमारी में मुब्तला कर सकते हैं । मगर दोस्तों हमारा इस बात पर पुख्ता ईमान और यकीन होना चाहिए कि अल्लाह तआला चडजो भी करता है अच्छा ही करता है, और जो भी होता है अल्लाह की मर्ज़ी से ही होता है । क्योंकि अल्लाह तआला आलम-उल-ग़ैब है । उसे हर बात की खबर है । उस के इल्म ने हर चीज को घेर रखा है । कहीं कोई दरख़्त से पत्ता गिरता है तो उसकी भी उसे खबर होती है । और कोई भी अल्लाह के मर्ज़ी के बगैर हिल भी नहीं सकता ।
इसीलिए दोस्तों…. अगर हम को कोई तकलीफ, दुख - दर्द, या बीमारी पहुँचे तो उस पर अपने रब की मर्ज़ी समझ कर शब्र करना चाहिए । और इस मुसीबत/परेशानी से निज़ात पाने के लिए अल्लाह तआला की तरफ ही रूज़ू करना चाहिए । यानी कि अल्लाह तआला पर तवक्कल (भरोसा) करना चाहिए और उस की इबादत में अपने आप को मशरूफ कर देना चाहिए ।
यकीन रखिए कि अल्लाह तआला हर चीज़ पर कादिर और खूब हिकमत वाला है । और वह अपने बन्दों की दुआ और अज़्र को ज़ाया नहीं करता ।
आप के शब्र का अज़्र अगर इस दुनिया में नहीं मिला तो अाख़िरत में जरूर मिलेगा । और ज़ालिमों को भी उनके गुनाहों की सज़ा जरूर मिलेगी । रोज़-ए-कयामत अल्लाह तआला अपना इंसाफ दिखाएगा और किसी पर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा ।
रिवायतों में है कि अगर सींग वाली बकरीने किसी बगैर सींग वाली बकरी को मारा होगा तो अल्लाह तआला उनके दरम्यिान भी फैसला करेगा ।
फिर हम तो अशरफूल मख़्लूकात हैं तो हमारा इंसाफ क्यों नहीं होगा ?
हमारा भी इंसाफ जरूर होगा ।
आखिर में दुआ है कि अल्लाह तआला हमें हर मुसीबत से बचाए और शबर और शुक्रिया अदा करने की तौफीक दे ! आमीन !
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याद रखें कि किसी को इल्म की बात बताना भी बहुत बड़ा सवाब है ।
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अल्लाह सबका हामी और मददगार हो !