Eid Ki Namaz - ईद की नमाज
इस पोस्ट में आपको ईद की नमाज (जिसे आम तौर पर ईद उल फित्र की नमाज भी कहा जाता है) का तरीका और इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातों की मालूमात दी जा रही है । उम्मीद है कि ये आपको पसन्द आएगी ।
शव्वाल की महीने की 1 तारीख को ईद उल फितर और जिलहिज्जा की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा कहते हैं । यह दोनों दिन इस्लाम में खुशी के दिन हैं और इन दोनों दिनों में शुक्राने के तौर पर 2-2 रकात नमाज पढ़ना वाजिब है।
A Muslim man Praying Eid Namaz ©Islamic Trainer |
नमाज जुम्मा के वाजिब और जो शर्तें है वही शर्तें ईद की नमाज में भी हैं, सिवाय खुत्बा के । जुम्मा की नमाज में खुत्बा शर्त है और नमाज से पहले पढ़ा जाता है जबकि, ईद की नमाज में खुत्बा शर्त नहीं सुन्नत है और नमाज के बाद पढ़ा जाता है । मगर ईदैन के खुत्बे का सुनना भी जुमा के खुत्बे की तरह वाज़िब है, यानी उस वक्त बातचीत करना या नमाज पढ़ना सब नाजायज है।
ईद की नमाज का तरीका - Eid ki namaz ka tarika
- दिल में यह नियत करें कि मैं 6 तक्बीरों के साथ ईद की 2 रकात वाजिब नमाज पढ़ता हूं ।
- नियत के अल्फाज जुबान से कहना जरूरी नहीं बल्कि दिल में इरादा कर लेना काफी है ।
- नियत करके हाथ बांध लें और सना पढ़ें ।
- फिर 3 मर्तबा अल्लाह हू अकबर कहें । हर मर्तबा तक्बीरे तहरीमा की तरह दोनों हाथ कानों तक उठाएं और तकबीर के बाद छोड़ दें ।
- इमाम दो तक्बीरों के दरमियान इतनी देर तक ठहरे जिसमें 3 मर्तबा "सुब्हान'अल्लाह" कहा जा सके ।
- तीसरी तकबीर के बाद हाथ बांध लें । फिर इमाम "अऊज़ुबिल्लाह" और "बिस्मिल्लाह" पढ़कर "सूरह फातिहा" और कोई "सूरह" पढ़कर रुकू और सज्दा करके खड़ा हो जाए ।
- दूसरी रकात में "सूरह फातिहा" और "सूरह" पढ़ने के बाद तीन तकबीर इस तरह कहें कि हर मर्तबा हाथ कानों तक उठाएं और चौथी तकबीर में हाथ ना उठाएं ।
- चौथी तकबीर में हाथ उठाए बगैर तकबीर कहते हुए सीधा रुकू में चले जाएं ।
- अब दूसरी नमाजों की तरह बाकी नमाज़ मुकम्मल कर लें ।
- नमाज़ के बाद खुत्बा ध्यान से सुनना चाहिए ।
ईद की नमाज के लिए शहर से बाहर जाना सुन्नत है —
शहर से बाहर ईद की नमाज़ पढ़ना सुन्नत-ए-मुअक्केदा है । क्योंकि रसूलुल्लाह (ﷺ) ईद की नमाज हमेशा बाहर ही अदा करते थे, बल्कि माज़ूर लोगों को साथ ले जाने का अहतमाम फरमाते थे । सिर्फ एक मर्तबा बारिश की वजह से बाहर तशरीफ ना ले जा सके थे।
Source:
रिवायत— अबू दाउद
इसीलिए असल हुक्म यही है कि ईद के लिए शहर से बाहर एक जगह इज़्तिमा-ए-अज़ीम हो। इसमें शौकत ए इस्लाम का मुज़ाहरा भी है। अगर शहर की गुंज़ान आबादी की वजह से बाहर निकलना मुश्किल हो या इंतजामी मुश्किलात हों तो शहर के अंदर किसी बड़े मैदान में बा-वक्ते-जरूरत मस्जिद में अदा करना बिला कराहत दुरुस्त है।
लेकिन जहां तक हो सके लाजिम है कि हर मोहल्ले में छोटे-छोटे इज़तिमात की बजाय एक मुकाम पर बड़े इज़तिमा की कोशिश की जाए, यानी किसी बड़ी जगह पर ईद की नमाज अदा की जाए ।
Source:
अहसानुल फतवा, 4/129
ईद की नमाज (Eid ki Namaz) के मुताल्लिक कुछ जरूरी बातें
- ईद की नमाज वाज़ीब है और तकबीरात भी वाजिब है ।
- ईद की नमाज में अगर मुक्तदी देर से आया और ज़ायद तक्बीरात निकल गई तो किरात शुरू हो या नहीं, मुक्तदी तकबीरे तहरीमा कहकर ज़ायद तक्बीरात भी कह ले।
- अगर इमाम रुकू में जा चुका हो और यह गुमान हो कि तक्बीरात कहकर इमाम के साथ रुकू में शामिल हो सकता है तो तकबीरे तहरीमा के बाद खड़े-खड़े तीन तक्बीरात कह कर रुकू में चला जाए।
- अगर यह गुमान हो के तक्बीरात कहूंगा तो इमाम रुकू से उठ जाएगा, तो तकबीरे तहरीमा कहकर रुकू में चला जाए और रुकू में रुकू की तस्बीह (सुभ्हान रब्बी अलअज़ीम) के बजाय बिना हाथ उठाए तक्बीरात कह ले ।
- अगर तक्बीरें पूरी ना हो सके और इमाम रुकू से उठ जाए तो तकबीरे छोड़ दें और इमाम की पैरवी करें।
- अगर रकात ही निकल गई तो जब इमाम सलाम फेर ले तो अपनी रकात पूरी करें । पहले केरात करें फिर तक्बीरात कहें और फिर रुकू की तकबीर कहकर रुकू में जाएं।
- ईद की नमाज में अगर इमाम गलती करें और गलती ऐसी हो जिससे नमाज फाशिद नहीं होती तो नमाज लौटाने की जरूरत नहीं है। लिखा है कि ईद की नमाज में अगर मजमा ज्यादा हो तो सजदा-सहव ना किया जाए।
- ईद का खुतबा सुन्नत है। खुत्बा नमाज के बाद होता है। कुछ हजरात नमाज के बाद दुआ करते हैं और कुछ हज़रात खुत्बा के बाद दुआ करते हैं, दोनों की गुंजाइश है।
- ईद के दिन गले मिलना सुन्नत नहीं, यह महज लोगों की बनाई हुई एक रस्म है। इसको दीन की बात समझना और ना करने वाले की मलामत करना बिदअत है।
- गैर मुसलमानों से ईद मिलना हराम है। ईद मिलन दोस्ती की अलामत है और अल्लाह के दुश्मन से दोस्ती हराम है क्योंकि दुश्मन का दोस्त भी दुश्मन ही होता है।
- ईद की नमाज की कजा नहीं है और ना ही इसका फिदया है। सिर्फ इस्तगफ़ार करें ।
- ईद के दिन ईदी की रस्म का रिवाज है। यह सुन्नत तो नहीं लेकिन खुशी के इजहार के लिए ऐसा किया जाता है तो कोई हर्ज नहीं।
ईद की नमाज़ के बाद मुसाफा के मकरूह होने की हद
ईद की नमाज के तुरंत बाद मुसाफा करना मकरू है, बिदअत है। क्योंकि ईद की नमाज के फौरन बाद खड़े होकर मुसाफा करना (हाथ मिलाना) या मुआनका करना (गले मिलना) ज़नाब रसूलुल्लाह (ﷺ) और सहाबा इकराम (रजि) से साबित नहीं है।
लेकिन कराहत सिर्फ ईदगाह तक के लिए है। उसके बाद अगर किसी से मुलाकात हो जाए और मुलाकात के वक्त मुसाफा करें या किसी दूर से आने वाले से एक अरसा के बाद मुलाकात हो जाए और ईद के दिन उनसे मुलाकात पर मुसाफा या मुआनका करे तो इसको मकरूह या बिदअत नहीं कहा जाएगा। क्योंकि यह मुसाफा या मुआनका ईद की वजह से नहीं है बल्कि आम मुलाकात का मुसाफा है, और आम मुलाकात के वक्त मुसाफा या दूर से आने वालों से मुआनका शरीयत से साबित है।
Source:
अहसानुल फतवा, 9/354 बा-हवाला दुर्रे मुख्तार, 1/381
आखिरी बात
दोस्तों उम्मीद है कि 'Eid ki namaz ka tarika' की ये मालूमात आपको पसन्द आई होगी । इसे सदका-ए-ज़ारिया की नियत से अपने दूसरे मुसलमान भाईयों तक शेयर करना न भूलें । इस्लामिक ट्रेनर वेब नेटवर्क की एडिटोरियल टीम की तरफ से आपको और आपके पूरे परिवार को एडवांस में ईद मुबारक !
चांद को चमकता सितारा मुबारक, समंदर को उसका किनारा मुबारक ।फूलों को उसकी खुशबू मुबारक, दिल को उसका दिलदार मुबारक ।।
🌹 हमारी तरफ से आपको और आपके परिवार को ईद मुबारक 💖
—— शुक्रिया 😊——
Eid ki namaz ka tarika Hindi mein | Eid ul fitr ki namaz kaise padhte hain | ईद की नमाज पढ़ने का सही तरीका क्या है? जानिए ।